पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/९२

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पांचवीं लड़की को किसी मन्दिर में दान कर देते हैं। इस प्रकार दान की हुई कन्यायें महाराष्ट्र में 'मुरली' कहाती हैं, और तैलंग में 'वसब' कहाती हैं, मद्रास, बम्बई प्रान्तों में उनके भिन्न भिन्न नाम हैं। जैसे योगनी, भावनी, नैकनी, कलावन्ती, देवली, जोगती मातंगीशरणा आदि।

ये स्त्रियाँ मन्दिरों में तो नाचती ही हैं परन्तु विशेष अवसरों पर बुलाने से अमीरों के घरों पर भी नाचने गाने जाती हैं। ये स्त्रियाँ गले में ज़ेवर पहिनती हैं, उनमे उनके देवता की मूर्ति भी चित्रित रहती है। कोई इस मूर्ति को केसरिया धागे में पिरोकर गले में पहिनती हैं और उसे अपने सौभाग्य का चिन्ह समझती हैं।

मालूम होता है कि देव दासियों की प्रथा बहुत पुरानी है, कालीदास ने अपने मेघदूत काव्य में उज्जैन के महाकाल के मन्दिर में इनके नृत्य की चर्चा इस भाँति की है—

पादान्यासै:क्वणितरशनास्तत्रलीलावधूतैः,
रत्नच्छाया खचित बलिभिश्चामरैःक्लान्तहस्ताः।
वेश्यास्त्वत्तोनखपदसुखान्प्राप्यवर्षाग्रविन्दू—
नामोक्ष्यन्ते त्वयिमधुकर श्रोणिदीर्घान्कटाक्षान्॥

बुद्ध भगवान् के सन्मुख भी गया में एक वेश्याओ का झुण्ड नाचता गाता आया था। यह गया के इन्द्रदेव के मन्दिर