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नाट्यसम्भव।

(दमनक से)हां! कुछ गा, जो तेरे जी में आवै)

दमनक। जो आज्ञा, सुनिए।

राग यथारुचि।

हम कहा कहैं, या सुख सरबस की धाता।
मन मचल जात घूमैं चक्करसा माथा॥
सुधि बुधि बिसरी, मर गई बिथा कित भाई।
जग से तजि नाता बने, मूढ़ सौदाई॥
फूलो आवत है पेड़, हरख न समाता।
हम यों अचेत, ज्योँ कर मौत से बाता॥

(अमराओं की ओर देखकर)

मन के हजार टुकड़े होगए छटा से।
घूमत हैं नैना इनके सुघर पटा से॥
जो बिरह सची को सहै इन्द्र मन मारे।
तो नित यह कौतुक दमनक आइ निहारै॥

भरत। दुर, मूर्ख क्या बक रहा है।

इन्द्र। (भरत से) इस समय में कुछ न कहिए, यह आनन्द में भरपूर डूब रहा है। (दमनक में) वाह रे, दमनक! तेरे भोलेपन से हम बहुत ही प्रसन्न हुए। ले मांग! अब क्या चाहता है।

दमनक। (उछल कर बगल बजाता हुआ) आपकी जय होय। हे अप्सरा-मनरंजन। जो आप मुझपर प्रसन्न