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नाट्यसम्भव।


नमुचि। (आपही आप) चलो, स्वार्थ की बात अव खुल गई, देखें, दैत्यराज इसका क्या उत्तर देते हैं।

बलि। आपका पूर्व उपकार स्मरण कर हमें यही उचित जान पड़ता है कि बिना कुछ सोचे विचार हम आपकी इस आता को सिर माथे पर चढ़ावें।

नमुचि। (आपही आप) और अपने पैरों में आप कुल्हाड़ी मारो!

इन्द्र। धन्य, देवर्षि! तुम सच मुच देवर्षि है।

सबदेवता। इसमें क्या सन्देह है।

नारद। तो अब विलंब करने का कोई प्रयोजन नहीं, तुम झटपट इन्द्राणी को हमारे हवाले करो और इस उदारता के लिये हम तुम्हें हृदय से आशीर्वाद देते हैं कि तुम एक दिन अचिन्त्यपूर्व अभ्युदय को पाओगे। बलि। आपका आशीर्वाद अवश्य वर का काम करेगा। (नमुचि से) तुम अभी जाकर बड़े आदर के साथ इन्द्राणी को लेआओ।

नमुचि। जो आज्ञा (आपही आप) हा! इस अनर्थ कर्म के संपादन करने के लिये हम्ही रहे। (गया)।

बलि। आप निश्चय जाने, केवल अवरुद्ध कर रखने के अतिरिक्त और इन्द्राणी का कुछ भी अपमान नहीं किया गया है।

नारद। तुम्हारे जैसे महाप्रतापी से अबला का अपमान