पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२१

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अतीत और वर्तमान कार्यों में सहायता पहुँचाने के लिये खड़ी कर सकेंगे । नेत्रों के सामने जैसे गोधूलि का अन्धकार छा गया हो । सचमुच कहाँ है हम में वे नारिया जिनके बारे में कहा जा सके- "हूँ बलिहारी राणिया भ्रूण सिखावण भाव नालो बाढणारी छुरी झपटे जणियों साव" खैर, ये बातें कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हों, कितनी ही आवश्यक क्यों न हो, इनके स्वप्न देखना अपने समाज की वर्तमान अवस्था को देखते हुए कुछ अधिक की आशा करना है । जब चौका, चूल्हा और सास-ननद की समस्याएँ ही हल नहीं हो पाई तो इन सब कार्यो की गुस्ता गम्भीरता देखते हुए यही कहना पड़ेगा कि अभी दिल्ली दूर है । गत महायुद्ध के बाद कम अधिक परिमाण में सभी देशों ने कुछ न कुछ उन्नति की है । भारत भी आगे बढ़ा है। शिक्षा, रूढ़ित्याग, समाजसेवा और इस प्रकार के अन्य सब कार्यों में भारतीय नारियों ने पिछले बीस पच्चीस वर्षों में काफी तरक्की की है। अनेकों महिलाएँ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी हैं। कम से कम स्त्रीशिक्षा का चलन तो अब भारत की सभी सभ्य कहलानेवाली जातियों में हो चुका है। केवल मारवाड़ी समाज ही ऐसा है जिसमें स्त्रीशिक्षा का अभी तक सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है । इसका प्रभाव अगली पीढ़ी पर भी पड़ रहा है । जब शिक्षा स्वयं में काई बुरी वस्तु नहीं है तो उसके पाने से कोई स्त्री कैसे बिगड़ सकती है ? किन्तु यह बात अभी तक हमारे समाज के बहुत से ठेकेदारों के मगज में नहीं घुस पाई। इस एक समस्या ने राजस्थानी नारी के सारे उन्नति के मार्गों में काट बिछा रखे हैं । आश्चर्य तो यह होता है कि ये ही रूढ़िवादी लोग गार्गी, अनुसूया, मैत्रेयी और मण्डनमिश्र की पत्नी जैसी विदुपियों की विद्वत्ता; मीरा, सहजो और दयाबाई जैसी भक्त नारियों की सामाजिक उपेक्षा; लक्ष्मी, दुर्गावती और पद्मिनी जैसी वीर ललनाओं के पौरूप और पन्नाधाय जैसी देवियों के त्याग की गाथाएँ सुनकर उन पर श्रद्धा के मोती बरसाते हैं किन्तु अपनी कन्याओं बहिनों और पत्नियों की शिक्षा का विरोध करते हैं। शिक्षा की कमी के कारण नारी न आगे पीछे देख पाती है और न उसे अपनी हीनावस्था पर झल्लाहट ही होती है जिससे उसमें आगे बढ़ने की इच्छा जागृत हो । अशिक्षा की प्रसूति है परदा । हमारे मन पर पड़े हुए अज्ञान के परदे को मुँह · पर पड़े हुए इस परदे ने दोहरा कर दिया हैं जिससे भूलकर भी प्रकाश की किरण वहा नहीं पहुंच पाती । इस दोहरे अन्धकार में हम देख नहीं पाते । यद्यपि मैं जानती हूं कि