पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२६

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नारी-समस्या ११० अत्युक्ति न होगी क्योंकि समाज का दुःख-सुख बहुत कुछ इसी समस्या पर आधारित है । मनु के समय में आठ प्रकार के विवाह प्रचलित थे:-१-ब्राह्म, २–दैव, ३- आर्ष, ४-प्राजापत्य, ५-आसुर, ६-गान्धर्व, ७-राक्षस और पैशाच । वेदशास्त्रज्ञ सदाचारी वर को बुलाकर, वर कन्या को वस्त्र पहनाकर आदर सत्कार के साथ वर का कन्या देना ब्राह्म विवाह कहलाता था । ऋत्विक का कर्म करने वाले का भूषित कन्या का दान करना दैव विवाह कहा जाता था। धादि विधि के निमित्त एक या दो बैल वर से लेकर उसका विधिपूर्वक कन्यादान करना आर्ष विवाह कहलाता था और तुम दोनों साथ-साथ रहकर धर्माचरण करे।, ऐसा कहकर वर कन्या के पूजनपूर्वक कन्यादान करना प्राजापत्य विवाह कहलाता था । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वो का उक्त पाँचों प्रकार के विवाह करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी थी और पहिले इसी प्रकार के विवाहों की अधिकता थी। यह स्मरण रहे कि ये पाँचों प्रकार के विवाह वर कन्या की सम्मति से उनकी इच्छानुसार ही होते थे । उक्त आठों प्रकार के विवाहों में आसुर, पैशाच और राक्षस विवाह निध समझे जाते थे । यद्यपि इनकी संख्या भी बहुत थी और ये धर्म के प्रतिकूल नहीं समझे जाते थे। फिर भी इन विवाहों को करने वाले समाज में श्रेष्ठ नहीं माने जाते थे। कन्या के पिता का बहुतसा धन देकर विना. कन्या की अनुमति के स्वेच्छा से विवाह करना जिसे आज कन्या-विक्रय कहते हैं, आसुर विवाह कहलाता था । सेोती हुई मतवाली या ज्ञानहीन कन्या का एकान्त में सतीत्व नष्ट कर पुनः उससे विवाह कर लेना पैशाच विवाह; प्रतिद्वन्द्वियों या कन्या के अभिभावकों से युद्ध कर किलों को तोड़, फोड़, लूटमार कर रोती हुई कन्या का हरण कर विवाह करना राक्षस विवाह कहलाता था । कन्या की इच्छा से युद्ध करके ले जाने के उदाहरण प्राचीन और मध्ययुग में भी अनेक मिलते हैं । जैसे कृष्ण, अर्जुन, पृथ्वीराज राजसिंह आदि । प्राचीन काल में स्वयंवर प्रथा थी और काफी सम्मानित और धार्मिक भी समझी जाती थी। किन्तु राजा महाराजाओं में ही इस प्रथा का अधिक प्रचलन था । स्वयंवर और गान्धर्व विवाह में कन्या का पति चुनने की पूरी स्वतन्त्रता रहती थी। वे एक दूसरे के गुण-दोषों, बल-वैभव रीति-नीति रूप और विचार आदि से परिचित होकर विवाह करते थे। इन दम्पतियों में परस्पर कटुता उत्पन्न होने का मौका नहीं आता था । इनके प्रेम की अमृतमयी मधुरता दिन-दिन बढ़ती जाती थी । आज भी अनेक