पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/३१

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श्रीपंचमी पंचमी का व्रत प्रारंभ होता है। भगवतो लक्ष्मी देवी ने नारद मुनि को उपदेश किया है कि "जो सौभाग्यवती स्त्री इस दिन से व्रत प्रारंभ कर छः वर्ष तक प्रति मास पंचमी का व्रत करेगी वह मेरे समान सुखी और पतिवल्लभा होगी।' इस दिन जगदंबा वीणापाणि सरस्वतीजी का "सारस्व. तोत्सव" करना लिखा है । दिन के प्रथम भाग अर्थात् पूर्वाह्न काल में पुष्प-धूपादि से सरस्वती के षोडशोपचार पूजन और 'दावात कलम' के अर्चन का विधान है। यही वह दिन है जिसकी प्रतीक्षा भारत के कवि जन वर्ष दिन से किया करते हैं। इस दिन जिस शिष्य को उपदेश दिया जाता है वह कृतार्थ होता है। गुरुकृपा से जिसको इस दिन 'सरस्वती कवच' मिल जाता है वह असाधारण बुद्धि-संपन्न होता है। किंतु अब वह समय नहीं है। भारतवर्ष के मूर्ख नास्तिक-प्राय पुरुष अब इस दिन का महत्त्व भूलते जाते हैं। ) जब कोई विचारवान् पुरुष कुछ काल के पश्चात् अपनी जन्मभूमि को देखकर प्रसन्न होता है और उसके दर्शन मात्र से पंचम्यां पूजयेल्लचमी पुष्पधूपानवारिभिः । मस्याधार लेखनीच पूजयेन लिखेत्ततः ॥ माघे मासि सिते पक्ष पंचमो या श्रियः प्रिया । बस्याः पूर्वाह्न एवेह कायः सारस्वतोत्सवः ।। (भविष्योत्तर)