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निबंध-रत्नावली

देखकर मुझे बड़ी हँसी आई कि खिलौना टूट गया है, इसलिये बालक हरदयाल ने 'सब मिट्टी हो गया' इत्यादि वाक्यावली से भूमिका बनाकर अपने छोटे भाई श्रीधर के नाम अभियोग खड़ा किया है। इस समय हँसकर मैं एक बात भी कहना चाहता था, किन्तु यह सोचकर चुप रह गया कि ऐसा करने से कहीं बालक को ढिठाई को सहारा न मिले और धमकाना इसलिये उचित नहीं समझा कि मनमौजी बालकों के आनन्द में विघ्न करने से क्या मतलब। खैर! दोनों प्रकार की व्यवस्था से मन हटाकर हरदयाल से कहा-'श्रीधर बहुत बिगड़ गया है, उसको आज से कोई खिलौना न देंगे'। हरदयाल अपने इच्छानुकूल उत्तर पाकर बहुत प्रसन्न हुआ, और हँसता हुआ श्रीधर को यह संवाद सुनाने दौड़ गया।

घर फिर नि:स्तब्ध हो गया, किंतु अंतःकरण नि:स्तब्ध नहीं हुआ। 'सब मिट्टी हो गया है', इस बात ने मन में एक दर्द पैदा कर दिया। अच्छा, मैं हँसकर बालक से क्या कहना चाहता था, वह तो सुन लीजिए। कहना चाहता था, 'जब वस्तु मिट्टी की है, तो मिट्टी हुई किस प्रकार? जो हो, वह बात तो हो चुकी। अब सोचने लगा, कि जो नष्ट वा निकम्मा हो जाता है, उसी का नाम है मिट्टी होना। क्या माश्चर्य है! मिट्टी के घर को कोई मिट्टी नहीं कहता, किंतु घर के गिर जाने पर लोग कहते हैं कि 'घर' मिट्टी हो गया! 'हमारा यह मकान, सब मिट्टी का बना हुआ है। दीवारें तो मिट्टी की है ही पर ईंटे