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सब मिट्टी हो गया

भी तो केवल पकी हुई मिट्टी के सिवा और क्या हैं? पर अब किसी से पूछिए कोई इसे मिट्टी नहीं कहेगा, गिर जाने पर सब कहेंगे कि 'मकान मिट्टी हो गया'।

लोग केवल घर ही के नष्ट होने पर 'मिट्टी हो गया' नहीं कहते हैं। और और जगह भी इसका प्रयोग करते हैं। किसी का बड़ा भारी परिश्रम जब विफल हो जाय, तब कहेंगे कि "सब मिट्टी हो गया"। किसी का धन खो जाय,मान मर्यादा भंग हो जाय, प्रभुता और क्षमता चली जाय तो कहेंगे-"सब मिट्टी हो गया।" इससे जाना गया कि नष्ट होना ही मिट्टी होना है। किंतु मिट्टी को इतना बदनाम क्यों किया जाता है? किसी वस्तु के नष्ट होने पर केवल मिट्टी ही तो नहीं होती। मिट्टी होती है, जल होता है, अग्नि होती है, वायु और आकाश भी होता है। फिर अकेली मिट्टी हो इस दुर्नाम को क्यों धारण करती है। यदि किसी की वस्तु अच्छे भाव पर बिकती नहीं है, तो कहेंगे 'मिट्टी की दर पर माल जा रहा है' वह माल चाहे बुरा के बराबर-कितना ही निकम्मा, कितना ही बुरा- क्यों न हो; निकृष्ट और अगौरव के स्थल पर तुरंत उसकी मिट्टी के साथ तुलना होती है! क्या सचमुच मिट्टी इतनी ही निकृष्ट है? और क्या केवल मिट्टी ही निकृष्ट है और हम कुछ निकृष्ट नहीं है? भगवती वसुंधरे! तुम्हारा 'सर्वसहा' नाम यथार्थ है! मच्छा, मा! यह तो कहो तुम्हारा नाम 'वसुंधरा' किसने रखा? यह नाम तो प्राचीन समय का नाम है। मालूम होता है