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अयोध्या


थे । खाली जल ही से नहीं, सुगंधित पुष्पों की भी मार्ग में वृष्टि होती थी, जिससे पुरी सुवासित रहती थो-

मुक्तपुष्पावकोर्णेन जलासिक्तन नित्यशः ।

नगरी में जब कोई विशेष उत्सव होता तब सर्वत्र चंदन के जल का छिड़काव होता और कमल तथा उत्पल सब जगह शोभित किए जाते । मार्ग और सड़कों पर रात्रि के समय दीपक वा प्रकाश का कुछ राजकीय प्रबंध था कि नहीं,इसका कुछ स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता। किंतु उत्सव के समय उसका विशेष व्यवस्था होती थी,इस विषय में स्पष्ट प्रमाण मिलता है। रामराज्याभिषेक की पहली रात्रि को सब मार्गों में दीपक-वृक्ष (झाड़) लगाए गए थे और खूब रोशनी की गई थी। यथा-

प्रकाशोकरणाथञ्च निशागमनशङ्कया।

दीपवृक्षांस्तथा चक्रु रनुरथ्यासु सर्वशः ।।

ऐसे उत्सव के समय मार्ग के दोनों ओर पुष्पमाला,ध्वजा और पताका भी लगाई जाती थी ओर संपूर्ण मार्ग 'धूपगंधाधि- वासित' भी किया जाता था । राजमार्ग (सड़क) के दोनों ओर सुदंर सजी सजाई नाना प्रकार की दुकाने शोभायमान थीं । इसके सिवाय कहीं उच्च अट्टालिका; कहीं सुसमृद्ध चारुदृश्य मानवालय,'कहीं चैत्यभूमि,कहीं वाणिज्यागार और कहीं 'भूघरशिखर सम देवनिकेतन' पुरी की शोभा बढ़ा रहे थे।

कहीं सूतमागध वास करते, सर्व्व प्रकार शिल्पनिपुण (कारीगर) दृष्टिगोचर होते और कहीं पुरस्त्रियों को नाट्य-