पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१४९

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के समय शिरसे ऊपर से धाग यहती है, यह शिव जी का अग है। याहर निकलते ही मुस्त्र में वेद का कोई मत्र वा घेदवद्य परमेश्वर का कोई नाम होता है, जो ब्रह्म का रूप है। क्यो, तीनों हो गये हमारे मित्र मुशी कालीचरण साहय 'सेयका कति की एक सवैया इसी मतलय में है, यथा--

सेवक तौर पै ठाढो भयो पद है यहि विष्णुना गंग दई है, न्हात समय सिरते कढ़ी ताछन शकर ली शुभ शोभाभई है। बाहर बाय पढ़े श्रुति मत्र त विधि को पद साची हुई है, माय त्रिंगामिनि तीर त्रितापिटु होत सदेह त्रिदेवमंपी है। घरच हमारे रसिकों को इन्द्र पदयो अधिक प्राप्त होती है, क्योंकि हजार आँखे मिलती है, इसका अर्थ समझना मुश्किल नहीं है। अहा हा

“नजर आता है हर गट परीयो हूरो गिलमा का।
मिले है राहे गगा में में रुतया सुलेमा का !