पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/२३

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कह कर उन्होंने सलाम किया तो वह सहसा बोल उठी " बेटी नीती रह"।

प्रतापनारायण जी बाजारों में धर्मशिक्षा देनेवाले पाद- रेयों से बहुत उलझा करते थे। और उनको सूय छकाते थे। उनकी तर्कशक्ति र प्रबल थी। एक बार आप कह बैठे कि दुनिया की प्रथमपुस्तक कोकशास्त्र है। पादरी के प्रश्न पर आपने इस शास्त्र के सिद्धान्तों का परिचय देकर बहुत से सामान्य धर्म, कर्म, उसी के अन्दर कह सुनाये । यह सब सुन- कर पादरी माहब बहुत ही छके ।

एक दिल्लगी और सुनिए । एक दिन पादरी साइच में और उनसे इस तरह बातचीत हुई-

- पादरी-आप गाय को माता कहते हैं?

। प्रताप०--जीहा।

पादरी-तो घेल को आप चचा कहेंगे?

प्रताप-वेशक-रिश्ते मे क्या इनकार है?

पादरी-हमने ता एक दिन अपनी आन से एक चल को मैला पाते देखा था।

प्रताप-अजी साहर, वह बैल ईसाई हो गया होगा।

हिन्दूसमाज में ऐसे भी चैल होत हे ।।।

पादरी साहर चुप हा रहे, कहते ही क्या ?

. एक वार कानपुर की म्यूनीसिपालिटी में इस बात पर विचार हो रहा था कि भेरवघाट में मुर्दे वदाये जांय या नहीं। (गङ्गाजी का प्रवाह उस घाट से कानपुर की बस्ती की ओर है), तरह तरह के प्रस्ताव होते होते किसी ने कहा कि जले दुए मुर्दे की पिण्डी यदि इतने इच से अधिक न हो तो यहाया