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सोलहवाँ परिच्छेद
 

कृष्णा-क्या जाने वहिन,शास्त्री जी सामान इकट्ठा कर रहे हैं।

सुधा-सुना है, दूल्हा की भावज बड़ी कड़े स्वभाव की स्त्री है।

कृष्णा-कैसे मालूम?

सुधा-मैं ने सुना है,इसलिए चेताए देती हूँ। चार वातें ग़म खाकर रहना होगा।

कृष्णा-मेरी झगड़ने की आदत ही नहीं। जब मेरी तरफ से कोई शिकायत ही न पावेंगी,तो क्या अनायास ही विगड़ेंगी?

सुधा- हाँ, सुना तो ऐसा ही है। झूठमूठ लड़ा करती हैं।

कृष्णा-मैं तो सौ बात की एक बात जानती हूँ-नम्रता पत्थर को भी मोम कर देती है।

सहसा शोर मचा-वारात आ रही है। दोनों रमणियाँ खिड़की के सामने आ बैठी। एक क्षण में निर्मला भी आ पहुंची।

वर के बड़े भाई को देखने की उसे वड़ी उत्सुकता हो रही थी।

सुधा ने कहा- कैसे पता चलेगा कि बड़े भाई कौन हैं?

निर्मला-शास्त्री जी से पूछ तो मालूम हो। हाथी पर तो कृष्णा के ससुर महाशय हैं। अच्छा, डॉक्टर साहब यहाँ कैसे आ पहुँचे। वह घोड़े पर क्या हैं, देखती नहीं हो?

सुधा-हाँ, हैं तो वही।

निर्मला-उन लोगों से मित्रता होगी। कोई सम्बन्ध तो नहीं है? .

सुधा-अव भेंट हो, तो पूछ। मुझे तो कुछ नहीं मालूम।