पृष्ठ:निर्मला.djvu/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
निर्मला
२००
 

आनन्द उठा रही थी। क्या उसे अपने बालक की फिक्र सताती है? मृत्यु तो बूढ़े और जवान का भेद नहीं करती;फिर सुधा को क्यों कोई चिन्ता नहीं सताती। उसे तो कभी भविष्य की चिन्ता से उदास नहीं देखा!

सहसा सुधा की नींद खुल गई। उसने निर्मला को अभी तक जागते देखा,तो बोली-अरे! अभी तुम सोई नहीं?

निर्मला-नींद ही नहीं आती!

सुधा-आँखें बन्द कर लो, आप ही नींद आ जायगी। मैं तो चारपाई पर आते ही मर सी जाती हूँ। वह जागते भी हैं, तो खबर नहीं होती। न जाने मुझे क्यों इतनी नींद आती है? शायद कोई रोग है।

निर्मला-हाँ, बड़ा भारी रोग है। इसे राज-रोग कहते हैं। डॉक्टर साहब से कहो-दवा शुरू कर दें। .

सुधा-तो आखिर जाग कर क्या सोचूँ। कभी-कभी मैके की याद आ जाती है,तो उस दिन जरा देर में आँख लगती है।

निर्मला डॉक्टर साहब की चाद नहीं आती?

सुधा-कभी नहीं, उनको याद क्यों आए? जानती हूँ कि टेनिस खेल कर आए होंगे; खाना खाया होगा और आराम से लेटे होंगे।

निर्मला-लो,सोहन भी जाग गया। जब तुम जाग गई,तो भला वह क्यों सोने लगा?

सुधा-हाँ वहिन,इसकी अजीब आदत है। मेरे साथ सोता