पृष्ठ:निर्मला.djvu/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
निर्मला
२०४
 

बच्चा हाथ से निकल गया!! सुधा की जीवन-सम्पत्ति देखते-देखते उसके हाथों से छिन गई!!!

वही जिसके विवाह का दो दिन पहले विनोद हो रहा था, आज सारे घर को रुला रहा है। जिसकी भोली-भाली सूरत देख कर माता की छाती फूल उठती थी,उसी को देख कर आज माता की छाती फटी जाती है। सारा घर सुधा को समझाता था;पर उसके आँसू न थमते थे, सब न होता था। सबसे बड़ा दुख इस बात का था कि पति को कौन मुँह दिखाऊँगी। उन्हें खबर तक न दी!

रात ही को तार दे दिया गया और दूसरे दिन डॉक्टर सिन्हा नौ बजते-बजते मोटर पर आ पहुँचे। सुधा ने उनके आने की खबर पाई, तो और भी फूट-फूट कर रोने लगी। बालक की जल-क्रिया हुई, डॉक्टर साहब कई बार अन्दर आए; किन्तु सुधा उनके पास न गई। उनके सामने कैसे जाय? उन्हें कौन मुँह दिखाए? उसने अपनी नादानी से उनके जीवन का रत्न छीन कर दरिया में डाल दिया। अब उनके पास जाते उसकी छाती के टुकड़े-टुकड़े हुए जाते थे। बालक को उसकी गोद में देख कर पति की आँखें चमक उठती थीं। बालक उमक कर पिता की गोद में चला जाता था। माता फिर बुलाती, तो पिता की छाती से चिमट जाता था; और लाख चुमकारने-दुलारने पर बाप की गोद न छोड़ता था। तब माँ कहती थी-बड़ा मतलबी है। आज वह किसे गोद में लेकर पति के पास जायगी! उसकी सूनी गोद