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अठारहवाँ परिच्छेद
 

कोई न रहे। अव जो लड़के होंगे उनके रास्ते से हम लोगों को हटा. देना चाहते हैं, यही उन दोनों आदमियों की दिली मन्शा है। हमें तरह-तरह की तकलीफें देकर भगा देना चाहते हैं! इसीलिए आजकल मुक़दमे नहीं लेते। हम दोनों भाई आज मर जाय, तो फिर देखिए कैसी वहार होती है।

डॉक्टर-अगर तुम्हें भगाना ही होता, तो कोई इल्जाम लगा कर घर से निकाल न देते?

जिया०-इसके लिए पहले ही से तैयार बैठा हुआ हूँ।

डॉक्टर-सुनें, क्या तैयारी की है?

जिया०-जब मौका आएगा, देख लीजिएगा।

यह कह कर जियाराम चलता हुआ। डॉक्टर सिन्हा ने बहुत पुकारा; पर उसने फिर कर देखा भी नहीं।

कई दिन के बाद डॉक्टर साहब की जियाराम से फिर मुलाकात हो गई। डॉक्टर साहब सिनेमा के प्रेमी थे, और जियाराम की तो जान ही सिनेमा में वसती थी। डॉक्टर साहब ने सिनेमा पर आलोचना करके जियाराम को वातों में लगा लिया, और अपने घर लाए। भोजन का समय आ गया था, दोनों आदमी साथ ही भोजन करने बैठे। जियाराम को यहाँ भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा; बोला-मेरे यहाँ तो जब से महाराज अलग हुआ, खाने का मजा ही जाता रहा। बुआ जी पका वैष्णवी भोजन बनाती हैं। जबरदस्ती खा लेता हूँ पर खाने की तरफ़ ताकने का जी नहीं चाहता।