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उन्नीसवाँ परिच्छेद
 

मुन्शी जी ने धमका कर कहा-अच्छा, तो मेरे पास फिर कोई चीज़ माँगने मत आना।

मुन्शी जी खुद बाजार चले गए; और एक रुपए की मिठाई लेकर लौटे। दो आने को मिठाई मांगते हुए उन्हें शर्म आई। हलवाई उन्हें पहचानता था। दिल में क्या कहेगा ?

मिठाई लिए हुए मुन्शी जी अन्दर चले गए। सियाराम ने मिठाई का बड़ा सा दोना देखा, तो वाप का कहना न मानने का उसे दुःख हुआ। अब वह किस मुंह से मिठाई लेने अन्दर जायगा। वड़ी भूल हुई । वह मन ही मन जियाराम के चाँटों की चोट और मिठाई की मिठास में तुलना करने लगा।

सहसा भुङ्गी ने दो तश्तरियॉ दोनों के सामने लाकर रख दी। जियाराम ने बिगड़ कर कहा-इसे उठा ले जा।

मुझी काहे को विगड़ते हो वाबू, क्या मिठाई अच्छी नहीं लगती?

जियाo-मिठाई आशा के लिए आई है, हमारे लिए नहीं आई । ले जा, नहीं तो मैं सड़क पर फेंक दूंगा। हम तो पैसे-पैसे के लिए रटते रहते हैं, और यहाँ रुपयों की मिठाई आती है।

भुङ्गी-तुम ले लो सिया वाबू, यह न लेंगे न सही। सियाराम ने डरते-डरते हाथ बढ़ाया था कि जियाराम ने डाँट कर कहा-मत छूना मिठाई, नहीं तो हाथ तोड़ कर रख दूंगा। लालची कहीं का । सियाराम यह घुड़की सुन कर सहम उठा। मिठाई खाने की हिम्मत न पड़ी । निर्मला ने यह कथा सुनी तो