पृष्ठ:निर्मला.djvu/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३३
वीसवाँ परिच्छेद
 

चोरी का इल्जाम लगाया जा रहा है। मेरे मुँह में तो कालिख लगेगी।

जियाराम ने आश्वासन देते हुए कहा-चलिए मैं तो देखू, आखिर ले कौन गया? चोर आया किस रास्ते से?

भुङ्गी-भैया, तुम भी चोरों के आने को कहते हो। चूहे के विल से तो निकल ही आते हैं, यहाँ तो चारों ओर खिड़कियाँ ही हैं।

जियाराम-खूब अच्छी तरह तलाश कर लिया है?

निर्मला-सारा घर तो छान मारा; अब कहाँ खोजने कहते हो।

जियाराम-आप लोग सो भी तो जाती हैं मुर्दो से बाजी लगा कर।

चार बजे मुन्शी जी घर में आए तो निर्मला की दशा देख कर पूछा-कैसी तबीयत है? कहीं दर्द तो नहीं है? यह कह कर उन्होंने आशा को गोद में उठा लिया।

निर्मला कोई जवाव तो न दे सकी, फिर रोने लगी!

भुङ्गी ने कहा-ऐसा कभी नहीं हुआ था। मेरी सारी उमर इसी घर में कट गई। आज तक एक पैसे की चोरी नहीं हुई। दुनिया यही कहेगी कि भुङ्गी का काम है,अब तो भगवान ही पत-पानी रक्खें।

मुन्शी जी अचकन के बटन खोल रहे थे। फिर बटन बन्द करते हुए बोले क्या हुआ? क्या कोई चीज चोरी हो गई?