पृष्ठ:निर्मला.djvu/२६५

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तेईसवाँ परिच्छेद

मुन्शी जी पाँच बजे कचहरी से लौटे; और अन्दर आकर चारपाई पर गिर पड़े। बुढ़ापे की देह उस पर आज सारे दिन भोजन न मिला। मुँह सूख गया था। निर्मला समझ गई, आज दिन खाली गया।

निर्मला ने पूछा—आज कुछ न मिला?

मुन्शी जी—सारा दिन दौड़ते गुज़रा; पर हाथ कुछ न लगा।

निर्मला—फौज़दारी वाले मामले में क्या हुआ?

मुन्शी जी—मेरे मुवक्किल को सज़ा हो गई।

निर्मला—और पण्डित वाले मुक़दमे में?

मुन्शी जी—पण्डित पर डिग्री हो गई।

निर्मला—आप तो कहते थे दावा ख़ारिज हो जायगा।

मुन्शी जी—कहता तो था; और अब भी कहता हूँ कि दावा ख़ारिज हो जाना चाहिए था; मगर उतना सिर-मग़ज़न कौन करे?