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निर्मला
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उसके पास और साधन ही क्या था ? जवानों की जिन्दगी का तो कोई भरोसा ही नहीं, बूढ़ों की जिन्दगी का क्या ठिकाना ? बच्ची के विवाह के लिए वह किसके सामने हाथ फैलाती ? बच्ची का भार कुछ उसी पर तो नहा था। वह केवल पति की सुविधा ही के लिए कुछ बटोरने का प्रयत्न कर रही थी। पति हो की क्यों ? सियाराम ही तो पिता के बाद घर का स्वामी होता । बहिन के विवाह करने का भार क्या उसके सिर न पड़ता ? निर्मला सारी कतर-व्यात पति और पुत्र का सङ्कट मोचन करने ही के लिए कर रही थी। बच्ची का विवाह इस परिस्थिति में सङ्कट के सिवाय और क्या था ? पर इसके लिए भी उसके भाग्य में अपयश ही बदा था।

दोपहर हो गया था ; पर आज भी चूल्हा नहीं जला । खाना भी जीवन का काम है-इसकी किसी को सुध ही न थी। मुन्शी जी बाहर बेजान-से पड़े थे, और निर्मला भीतर । बच्ची कभी भीतर जाती, कभी बाहर । कोई उससे बोलने वाला न था। बार-बार सियाराम के कमरे के द्वार पर जाकर खड़ी होती; और 'बैया-वैया' पुकारती ; पर 'वैया' कोई जवाब न देता था!

सन्ध्या समय मुन्शी जी आकर निर्मला से बोले तुम्हारे पास कुछ रुपए हैं ?

निर्मला ने चौंक कर पूछा-क्या कीजिएगा ?

मुन्शी जी-मैं जो पूछता हूँ उसका जवाब दो।