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यह सोच-विचार करते हुए वह घर में जाकर रंगीलीबाई से बोले—इस दुष्ट ने हमारी-तुम्हारी बातें सुन लीं। रूठकर चला जा रहा है।

रंगीली-जब तुम जानते थे कि द्वार पर खड़ा है, तो धीरे से क्यों न बोले?

भालचंद्र–विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती। यह क्या जानता था कि वह द्वार पर कान लगाए खड़ा है।

रंगीली-न जाने किसका मुँह देखा था?

भालचंद्र—वही दुष्ट सामने लेटा हुआ था। जानता तो उधर ताकता ही नहीं। अब तो इसे कुछ दे-दिलाकर राजी करना पड़ेगा।

रंगीली—ऊँह, जाने भी दो। जब तुम्हें वहाँ विवाह ही नहीं करना है तो क्या परवाह है? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे।

भालचंद्र-यों जान न बचेगी। लाओ दस रुपए विदाई के बहाने दे दूँ। ईश्वर फिर इस मनहूस की सूरत न दिखाए।

रंगीली ने बहुत अछताते-पछताते दस रुपए निकाले और बाबू साहब ने उन्हें ले जाकर पंडितजी के चरणों पर रख दिया। पंडितजी ने दिल में कहा—धत्तेरे मक्खीचूस की! ऐसा रगड़ा कि याद करोगे। तुम समझते होगे कि दस रुपए देकर इसे उल्लू बना लूँगा। इस फेर में न रहना। यहाँ तुम्हारी नस-नस पहचानते हैं। रुपए जेब में रख लिए और आशीर्वाद देकर अपनी राह ली।

बाबू साहब बड़ी देकर तक खड़े सोच रहे थे—मालूम नहीं, अब भी मुझे कृपण ही समझ रहा है या परदा ढक गया। कहीं ये रुपए भी तो पानी में नहीं गिर पड़े।

4.

कल्याणी के सामने अब एक विषम समस्या आ खड़ी हुई। पति के देहांत के बाद उसे अपनी दुरावस्था का यह पहला और बहुत ही कड़वा अनुभव हुआ। दरिद्र विधवा के लिए इससे बड़ी और क्या विपत्ति हो सकती है कि जवान बेटी सिर पर सवार हो? लड़के नंगे पाँव पढ़ने जा सकते हैं, चौका-बरतन भी अपने हाथ से किया जा सकता है, रूखा-सूखा खाकर निर्वाह किया जा सकता है, झोंपड़े में दिन काटे जा सकते हैं, लेकिन कन्या घर में नहीं बैठाई जा सकती। कल्याणी को भालचंद्र पर ऐसा क्रोध आता था कि स्वयं जाकर उसके मुँह में कालिख लगाऊँ, सिर के बाल नोच लूँ, कहूँ कि तू अपनी बात से फिर गया, तू अपने बाप का बेटा नहीं। पंडित मोटेराम ने उनकी कपटलीला का नग्न वृत्तांत सुना दिया था।

वह इसी क्रोध में भरी बैठी थी कि कृष्णा खेलती हुई आई और बोली–कै दिन में बारात आएगी अम्माँ? पंडित तो आ गए।

कल्याणी-बारात का सपना देख रही है क्या?

कृष्णा—वही चंदर तो कह रहा है कि दो-तीन दिन में बारात आएगी, क्या न आएगी अम्माँ?

कल्याणी-एक बार तो कह दिया, सिर क्यों खाती है?

कृष्णा—सबके घर तो बारात आ रही है, हमारे यहाँ क्यों नहीं आती?

कल्याणी-तेरे यहाँ जो बारात लानेवाला था, उसके घर में आग लग गई।

कृष्णा-सच अम्मा! तब तो सारा घर जल गया होगा। कहाँ रहते होंगे? बहन कहाँ जाकर रहेगी?

कल्याणी-अरे पगली! तू तो बात ही नहीं समझती। आग नहीं लगी। वह हमारे यहाँ ब्याह न करेगा।