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है और मेरी समझ में नहीं आता कि किन शब्दों में उसका तिरस्कार करूँ!

सिन्हा ने हिचकिचाते हुए कहा-वह...वह...वह...दूसरी बात थी। लेन-देन का कारण नहीं था, बिल्कुल दूसरी बात थी। कन्या के पिता का देहांत हो गया था। ऐसी दशा में हम लोग क्यों करते? यह भी सुनने में आया था कि कन्या में कोई ऐब है। वह बिल्कुल दूसरी बात थी, मगर तुमसे यह कथा किसने कही।

सुधा-कह दो कि वह कन्या कानी थी या कुबड़ी थी या नाइन के पेट की थी या भ्रष्टा थी। इतनी कसर क्यों छोड दी? भला सुनूँ तो उस कन्या में क्या ऐब था?

सिन्हा-मैंने देखा तो था नहीं, सुनने में आया था कि उसमें कोई ऐब है।

सुधा-सबसे बड़ा ऐब यही था कि उसके पिता का स्वर्गवास हो गया था और वह कोई लंबी-चौड़ी रकम न दे सकती थी। इतना स्वीकार करते क्यों झेंपते हो? मैं कुछ तुम्हारे कान तो काट न लूँगी! अगर दो-चार फिकरे कहूँ तो इस कान से सुनकर उस कान से उड़ा देना। ज्यादा-चीं-चपड़ करूँ तो छड़ी से काम ले सकते हो, औरत जात डंडे ही से ठीक रहती है। अगर उस कन्या में कोई ऐब था तो मैं कहूँगी, लक्ष्मी भी बे-ऐब नहीं। तुम्हारी तकदीर खोटी थी, बस! और क्या? तुम्हें तो मेरे पल्ले पड़ना था।

सिन्हा-तुमसे किसने कहा कि वह ऐसी थी, वैसी थी? जैसे तुमने किसी से सुनकर मान लिया, वैसे ही हम लोगों ने भी सुनकर मान लिया।

सुधा—मैंने सुनकर नहीं मान लिया। अपनी आँखों देखा। ज्यादा बखान क्या करूँ, मैंने ऐसी सुंदर स्त्री कभी नहीं देखी थी।

सिन्हा ने व्यग्र होकर पूछा-क्या वह यहीं कहीं है? सच बताओ, उसे कहाँ देखा! क्या तुम्हारे घर आई थी?

सुधा–हाँ, मेरे घर में आई थी और एक बार नहीं, कई बार आ चुकी है। मैं भी उसके यहाँ कई बार जा चुकी हूँ। वकील साहब की बीवी वही कन्या है, जिसे आपने ऐबों के कारण त्याग दिया।

सिन्हा-सच!

सुधा-बिल्कुल सच। आज अगर उसे मालूम हो जाए कि आप वही महापुरुष हैं तो शायद फिर इस घर में कदम न रखे। ऐसी सुशीला, घर के कामों में ऐसी निपुण और ऐसी परम सुंदरी स्त्री इस शहर में दो ही चार होंगी। तुम मेरा बखान करते हो। मैं उसकी लौंडी बनने के योग्य भी नहीं हूँ। घर में ईश्वर का दिया हुआ सबकुछ है, मगर जब प्राणी ही मेल का नहीं तो और सब रहकर क्या करेगा? धन्य है उसके धैर्य को कि उस बुड्ढे खूसट वकील के साथ जीवन के दिन काट रही है। मैंने तो कब का जहर खा लिया होता, मगर मन की व्यथा कहने से ही थोड़े प्रकट होती है। हँसती है, बोलती है, गहने-कपड़े पहनती है, पर रोयाँ-रोयाँ रोया करता है

सिन्हा-वकील साहब की खूब शिकायत करती होगी?

सुधा–शिकायत क्यों करेगी? क्या वह उसके पति नहीं हैं? संसार में अब उसके लिए जो कुछ हैं, वकील साहब। वह बुड्ढे हों या रोगी, पर हैं तो उसके स्वामी ही। कुलवंती स्त्रियाँ पति की निंदा नहीं करतीं, यह कुलटाओं का काम है। वह उनकी दशा देखकर कुढ़ती हैं, पर मुँह से कुछ नहीं कहतीं।

सिन्हा-इन वकील साहब को क्या सूझी थी, जो इस उम्र में ब्याह करने चले?

सुधा-ऐसे आदमी न हों तो गरीब क्वारियों की नाव कौन पार लगाए? तुम और तुम्हारे साथी बिना भारी गठरी लिए बात नहीं करते, तो फिर ये बेचारी किसके घर जाएँ? तुमने यह बड़ा भारी अन्याय किया है और तुम्हें इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा। ईश्वर उसका सुहाग अमर करे, लेकिन वकील साहब को कहीं कुछ हो गया तो बेचारी का जीवन ही नष्ट हो जाएगा। आज तो वह बहुत रोती थी। तुम लोग सचमुच बड़े निर्दयी हो। मैं तो अपने सोहन का