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विवाह किसी गरीब लड़की से करूँगी।

डॉक्टर साहब ने यह पिछला वाक्य नहीं सुना। वह घोर चिंता में पड़ गए। उनके मन में यह प्रश्न उठ-उठकर उन्हें विकल करने लगा। कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उन्हें अपने स्वार्थ का भयंकर स्वरूप दिखाई दिया। वास्तव में यह उन्हीं का अपराध था। अगर उन्होंने पिता से जोर देकर कहा होता कि मैं और कहीं विवाह न करूँगा तो क्या वह उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह कर देते?

सहसा सुधा ने कहा-कहो तो कल निर्मला से तुम्हारी मुलाकात करा दूँ? वह भी जरा तुम्हारी सूरत देख ले। वह कुछ बोलेगी तो नहीं, पर कदाचित् एक दृष्टि से वह तुम्हारा इतना तिरस्कार कर देगी, जिसे तुम कभी न भूल सकोगे। बोलो, कल मिला दूँ? तुम्हारा बहुत संक्षिप्त परिचय भी करा दूंगी।

सिन्हा ने कहा-नहीं सुधा, तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ, कहीं ऐसा गजब न करना! नहीं तो सच कहता हूँ, घर छोड़कर भाग जाऊँगा।

सुधा—जो काँटा बोया है, उसका फल खाते क्यों इतना डरते हो? जिसकी गरदन पर कटार चलाई है, जरा उसे तड़पते भी तो देखो। मेरे दादा जी ने पाँच हजार दिए न! अभी छोटे भाई के विवाह में पाँच-छह हजार और मिल जाएँगे। फिर तो तुम्हारे बराबर धनी संसार में काई दूसरा न होगा। ग्यारह हजार बहुत होते हैं। बाप-रे-बाप ग्यारह हजार! उठा-उठाकर रखने लगे, तो महीनों लग जाएँ। अगर लड़के उड़ाने लगें तो पीढियों तक चले। कहीं से बात हो रही है या नहीं?

इस परिहास से डॉक्टर साहब इतना झेंपे कि सिर तक न उठा सके। उनका सारा वाक्य-चातुर्य गायब हो गया। नन्हा सा मुँह निकल आया, मानो मार पड़ गई हो। इसी वक्त किसी ने डॉक्टर साहब को बाहर से पुकारा। बेचारे जान लेकर भागे। स्त्री कितनी परिहास कुशल होती है, इसका आज परिचय मिल गया।

रात को डॉक्टर साहब शयन करते हुए सुधा से बोले-निर्मला की तो कोई बहन है न? सुधा हाँ, आज उसकी चर्चा तो करती थी। इसकी चिंता अभी से सवार हो रही है। अपने ऊपर तो जो कुछ बीतना था, बीत चुका। बहन की फिक्र में पड़ी हुई थी। माँ के पास तो अब और भी कुछ नहीं रहा। मजबूरन किसी ऐसे ही बूढ़े बाबा के गले वह भी मढ़ दी जाएगी। सिन्हा—निर्मला तो अपनी माँ की मदद कर सकती है।

सुधा ने तीक्ष्ण स्वर में कहा-तुम भी कभी-कभी बिल्कुल बेसिर-पैर की बातें करने लगते हो। निर्मला बहुत करेगी तो दो-चार सौ रुपए दे देगी और क्या कर सकती है? वकील साहब का यह हाल हो रहा है, उसे अभी पहाड़-सी उम्र काटनी है। फिर कौन जाने उनके घर का क्या हाल है? इधर छह महीने से बेचारे घर बैठे हैं। रुपए आकाश से थोड़े ही बरसते हैं।

दस-बीस हजार होंगे भी तो बैंक में होंगे। कुछ निर्मला के पास तो रखे न होंगे। हमारा दो सौ रुपया महीने का खर्च है तो क्या इनका चार सौ रुपए महीने का भी न होगा?

सुधा को तो नींद आ गई, पर डॉक्टर साहब बहुत देर तक करवट बदलते रहे, फिर कुछ सोचकर उठे और मेज पर बैठकर एक पत्र लिखने लगे।

14.

दोनों बातें एक ही साथ हुई—निर्मला ने कन्या को जन्म दिया। कृष्णा का विवाह निश्चित हुआ और मुंशी तोताराम