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दौड़ी गई थी, लेकिन जब तक डॉक्टर लोग वह प्रक्रिया आरंभ करें, उसके प्राण निकल गए।

कृष्णा-ताजा रक्त पड़ जाने से उसकी जान बच जाती?

निर्मला-कौन जानता है? लेकिन मैं तो अपने रुधिर की अंतिम बूंद तक देने का तैयार थी। उस दशा में भी उसका मुखमंडल दीपक की भाँति चमकता था। अगर वह मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों पर न गिर पड़ता, पहले कुछ रक्त देह में पहुँच जाता, तो शायद बच जाता।

कृष्णा–तो तुमने उन्हें उसी वक्त लिटा क्यों न दिया?

निर्मला-अरे पगली, तू अभी तक बात न समझी। वह मेरे पैरों पर गिरकर और माता-पुत्र का संबंध दिखाकर अपने बाप के दिल से वह संदेह निकाल देना चाहता था। केवल इसीलिए वह उठा था। मेरा क्लेश मिटाने के लिए उसने प्राण दिए और उसकी वह इच्छा पूरी हो गई। तुम्हारे जीजाजी उसी दिन से सीधे हो गए। अब तो उनकी दशा पर मुझे दया आती है। पुत्र-शोक उनके प्राण लेकर छोड़ेगा। मुझ पर संदेह करके मेरे साथ जो अन्याय किया है, अब उसका पश्चाताप कर रहे हैं। अबकी उनकी सूरत देखकर तू डर जाएगी। बूढ़े बाबा हो गए हैं, कमर भी कुछ झुक चली है।

कृष्णा–बुड्ढे लोग इतनी शक्की क्यों होते हैं, बहन?

निर्मला—यह जाकर बुड्ढों से पूछो।

कृष्णा-मैं समझती हूँ, उनके दिल में हरदम एक चोर-सा बैठा रहता होगा कि इस युवती को प्रसन्न नहीं रख सकता, इसलिए जरा-जरा सी बात पर उन्हें शक होने लगता है।

निर्मला-जानती तो है, फिर मुझसे क्यों पूछती है?

कृष्णा-इसीलिए बेचारा स्त्री से दबता भी होगा। देखनेवाले समझते होंगे कि यह बहुत प्रेम करता है।

निर्मला-तूने इतने ही दिनों में इतनी बातें कहाँ सीख ली? इन बातों को जाने दे। बता, तुझे अपना वर पसंद है? उसकी तसवीर तो देखी होगी?

कृष्णा–हाँ, आई तो थी, लाऊँ देखोगी? एक क्षण में कृष्णा ने तसवीर लाकर निर्मला के हाथ में रख दी।

निर्मला ने मुसकराकर कहा-तू बड़ी भाग्यवान है।

कृष्णा-अम्माँजी ने भी बहुत पसंद किया।

निर्मला-तुझे पसंद है कि नहीं, सो कह, दूसरों की बात न चला।

कृष्णा-(लजाती हुई) शक्ल-सूरत तो बुरी नहीं है। स्वभाव का हाल ईश्वर जाने। शास्त्रीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील और चरित्रवान युवक कम होंगे।

निर्मला—यहाँ से तेरी तसवीर भी गई थी?

कृष्णा—गई तो थी, शास्त्रीजी ही तो ले गए थे।

निर्मला-उन्हें पसंद आई?

कृष्णा—अब किसी के मन की बात मैं क्या जानूँ? शास्त्रीजी कहते थे, बहुत खुश हुए थे।

निर्मला-अच्छा, बता, तुझे क्या उपहार दूँ? अभी से बता दे, जिससे बनवा रखूँ।

कृष्णा—जो तुम्हारा जी चाहे, देना। उन्हें पुस्तकों से बहुत प्रेम है। अच्छी-अच्छी पुस्तकें मँगवा देना।

निर्मला-उनके लिए नहीं पूछती तेरे लिए पूछती हूँ।

कृष्णा-अपने ही लिए तो मैं कह रही हूँ।