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पोले हाथों से पाँच बार सोहन का सिर सहलाया। अब जो देखा तो पाँचों तीलियाँ छोटी-बड़ी हो गई थीं। सब स्त्रियों यह कौतुक देखकर दंग रह गईं। अब नजर में किसे संदेह हो सकता था। महँगू ने फिर बच्चे को तीलियों से सहलाना शुरू किया। अब की तीलियाँ बराबर हो गई। केवल थोड़ा सा अंतर रह गया। यह सब इस बात का प्रमाण था कि नजर का असर अब थोड़ा सा और रह गया है। महँगू सबको दिलासा देकर शाम को फिर आने का वायदा करके चला गया। बालक की दशा दिन को और खराब हो गई। खाँसी का जोर हो गया। शाम के समय महँगू ने आकर फिर तीलियों का तमाशा किया। इस वक्त पाँचों तीलियों बराबर निकलीं। स्त्रियाँ निश्चिंत हो गई, लेकिन सोहन को सारी रात खाँसते गुजरी। यहाँ तक कि कई बार उसकी आँखें उलट गई। सुधा और निर्मला दोनों ने बैठकर सबेरा किया। खैर, रात कुशल से कट गई। अब वृद्धा माताजी नया रंग लाई। महँगू नजर न उतार सका, इसलिए अब किसी मौलवी से फूंक डलवाना जरूरी हो गया। सुधा फिर भी अपने पति को सूचना न दे सकी। मेहरी सोहन को एक चादर से लपेट कर एक मसजिद में ले गई और फूंक डलवा लाई। शाम को भी फूँक छोड़ी, पर सोहन ने सिर न उठाया। रात आ गई, सुधा ने मन में निश्चय किया कि रात कुशल से बीतेगी तो प्रातःकाल पति को तार दूँगी।

लेकिन रात कुशल से न बीतने पाई। आधी रात जाते-जाते बच्चा हाथ से निकल गया। सुधा की जीवन-संपत्ति देखते-देखते उसके हाथों से छिन गई।

वही जिसके विवाह का दो दिन पहले विनोद हो रहा था, आज सारे घर को रुला रहा है। जिसकी भोली-भाली सूरत देखकर माता की छाती फूल उठती थी, उसी को देखकर आज माता की छाती फटी जाती है। सारा घर सुधा को समझाता था, पर उसके आँसू न थमते थे, सब्र न होता था। सबसे बड़ा दुःख इस बात का था कि पति को कौन मुँह दिखलाऊँगी! उन्हें खबर तक न दी।

रात ही को तार दे दिया गया और दूसरे दिन डॉक्टर सिन्हा नौ बजते-बजते मोटर पर आ पहुँचे। सुधा ने उनके आने की खबर पाई तो और भी फूट-फूटकर रोने लगी। बालक की जल-क्रिया हुईं। डॉक्टर साहब कई बार अंदर आए, किंतु सुधा उनके पास न गईं। उनके सामने कैसे जाए? कौन मुँह दिखाए? उसने अपनी नादानी से उनके जीवन का रत्न छीनकर दरिया में डाल दिया। अब उनके पास जाते उसकी छाती के टुकड़े-टुकड़े हुए जाते थे। बालक को उसकी गोद में देखकर पति की आँखें चमक उठती थीं। बालक हुमककर पिता की गोद में चला जाता था। माता फिर बुलाती तो पिता की छाती से चिपट जाता था और लाख चुमराने-दुलारने पर भी बाप को गोद न छोड़ता था। तब माँ कहती थी—बड़ा मतलबी है। आज वह किसे गोद में लेकर पति के पास जाएगी? उसकी सूनी गोद देखकर कहीं वह चिल्लाकर रो न पड़े। पति के सम्मुख जाने की अपेक्षा उसे मर जाना कहीं आसान जान पड़ता था। वह एक क्षण के लिए भी निर्मला को न छोड़ती थी कि कहीं पति से सामना न हो जाए। निर्मला ने कहा-बहन, जो होना था, वह हो चुका, अब उनसे कब तक भागती फिरोगी। रात ही को चले जाएँगे। अम्मा कहती थीं।

सुधा ने सजल नेत्रों से ताकते हुए कहा—कौन मुँह लेकर उनके पास जाऊँ? मुझे डर लग रहा है कि उनके सामने जाते ही मेरे पैर न थर्राने लगे और मैं गिर पड़ूँ।

निर्मला-चलो, मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ। तुम्हें सँभाले रहूँगी।

सुधा—मुझे छोड़कर भाग तो न जाओगी?

निर्मला-नहीं-नहीं, भागूँगी नहीं।

सुधा—मेरा कलेजा तो अभी से उमड़ा आता है। मैं इतना घोर वज्रपात होने पर भी बैठी हूँ, मुझे यही आश्चर्य हो रहा