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लिए बैठी या टहलती रहती थी। उसके अहसान कभी न भूलूँगी। क्या तुम आज ही जा रहे हो?

डॉक्टर–हाँ, छुट्टी लेने का मौका न था। सिविल सर्जन शिकार खेलने गया हुआ था।

सुधा—यह सब हमेशा शिकार ही खेला करते हैं?

डॉक्टर-राजाओं को और काम ही क्या है?

सुधा—मैं तो आज न जाने दूँगी।

डॉक्टर–जी तो मेरा भी नहीं चाहता।

सुधा-तो मत जाओ, तार दे दो। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। निर्मला को भी लेती चलूँगी।

सुधा वहाँ से लौटी तो उसके हृदय का बोझ हलका हो गया था। पति की प्रेमपूर्ण कोमल वाणी ने उसके सारे शोक और संताप का हरण कर लिया था। प्रेम में असीम विश्वास है, असीम धैर्य है और असीम बल है।

18.

जब हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आ पड़ती है तो उससे हमें केवल दुःख ही नहीं होता, हमें दूसरों के ताने भी सहने पड़ते हैं। जनता को हमारे ऊपर टिप्पणियों करने का वह सुअवसर मिल जाता है, जिसके लिए वह हमेशा बेचैन रहती है। मंसाराम क्या मरा, मानो समाज को उनपर आवाजें कसने का बहाना मिल गया। भीतर की बातें कौन जाने, प्रत्यक्ष बात यह थी कि यह सब सौतेली माँ की करतूत है, चारों तरफ यही चर्चा थी। ईश्वर न करे लड़कों को सौतेली माँ से पाला पड़े। जिसे अपना बना-बनाया घर उजाड़ना हो, अपने प्यारे बच्चों की गरदन पर छुरी फेरनी हो, वह बच्चों के रहते हुए अपना दूसरा ब्याह करे। ऐसा कभी नहीं देखा कि सौत के आने पर घर तबाह न हो गया हो, वही बाप जो बच्चों पर जान देता था, सौत के आते ही उन्हीं बच्चों का दुश्मन हो जाता है, उसकी मति ही बदल जाती है। ऐसी देवी ने जन्म ही नहीं लिया, जिसने सौत के बच्चों को अपना समझा हो।

मुश्किल यह थी कि लोग टिप्पणियों पर संतुष्ट न होते थे। कुछ ऐसे सज्जन भी थे, जिन्हें अब जियाराम और सियाराम से विशेष स्नेह हो गया था। वे दोनों बालकों से बड़ी सहानुभूति प्रकट करते, यहाँ तक कि दो-एक महिलाएँ तो उसकी माता के शील और स्वभाव को याद कर आँसू बहाने लगती थीं। हाय-हाय! बेचारी क्या जानती थी कि उसके मरते ही लाड़लों की यह दुर्दशा होगी! अब दूध-मक्खन काहे को मिलता होगा! जियाराम कहता—मिलता क्यों नहीं?

महिला कहती-मिलता है! अरे बेटा, मिलना भी कई तरह का होता है। पानीवाला दूध टके सेर का मँगाकर रख दिया, पियो चाहे न पियो, कौन पूछता है? नहीं तो बेचारी नौकर से दूध दुहवा कर मँगवाती थी। वह तो चेहरा ही कह देता है। दूध की सुरत छिपी नहीं रहती, वह सुरत ही नहीं रही। जिया को अपनी माँ के समय के दूध का स्वाद तो याद था नहीं, जो इस आक्षेप का उत्तर देता और न उस समय की अपनी सूरत ही याद थी, चुप रह जाता। इन शुभाकांक्षाओं का असर भी पड़ना स्वाभाविक था। जियाराम को अपने घरवालों से चिढ़ होती जाती थी। मुंशीजी मकान नीलामी हो जाने के बाद दूसरे घर में उठ आए तो किराए की फिक्र हुईं। निर्मला ने मक्खन बंद कर दिया। वह आमदनी ही नहीं रही तो खर्च कैसे रहता। दोनों कहार अलग कर दिए गए। जियाराम को यह कतर-ब्यौंत बुरी लगती थी। जब निर्मला मैके चली गई तो मुंशीजी ने दूध भी बंद कर दिया। नवजात कन्या की चिंता अभी से उनके सिर पर सवार हो गई थी।

सियाराम ने बिगड़कर कहा–दूध बंद रहने से तो आपका महल बन रहा होगा, भोजन भी बंद कर दीजिए