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के शिकंजे में कसते। अपने लड़के को क्या करें? सच कहा है—आदमी हारता है तो अपने लड़कों ही से।

एक दिन डॉक्टर सिन्हा ने जियाराम को बुलाकर समझाना शुरू किया। जियाराम उनका अदब करता था। चुपचाप बैठा सुनता रहा। जब डॉक्टर साहब ने अंत में पूछा, आखिर तुम चाहते क्या हो? तो वह बोला-साफ-साफ कह दूँ? बुरा तो न मानिएगा?

सिन्हा-नहीं, जो कुछ तुम्हारे दिल में हो, साफ-साफ कह दो।

जियाराम-तो सुनिए, जब से भैया मरे हैं, मुझे पिताजी की सूरत देखकर क्रोध आता है। मुझे ऐसा मालूम होता है कि इन्हीं ने भैया की हत्या की है और एक दिन मौका पाकर हम दोनों भाइयों की भी हत्या करेंगे। अगर उनकी यह इच्छा न होती तो ब्याह ही क्यों करते?

डॉक्टर साहब ने बड़ी मुश्किल से हँसी रोककर कहा-तुम्हारी हत्या करने के लिए उन्हें ब्याह करने की क्या जरूरत थी, यह बात मेरी समझ में नहीं आई। बिना विवाह किए भी तो वह हत्या कर सकते थे।

जियाराम-कभी नहीं, उस वक्त तो उनका दिल ही कुछ और था, हम लोगों पर जान देते थे, अब मुँह तक नहीं देखना चाहते। उनकी यही इच्छा है कि उन दोनों प्राणियों के सिवा, घर में और कोई न रहे। अब जो लड़के होंगे, उनके रास्ते से हम लोगों का हटा देना चाहते हैं। यही उन दोनों आदमियों की दिली मंशा है। हमें तरह-तरह की तकलीफें देकर भगा देना चाहते हैं, इसीलिए आजकल मुकदमे नहीं लेते। हम दोनों भाई आज मर जाएँ तो फिर देखिए कैसी बहार होती है।

डॉक्टर-अगर तुम्हें भगाना ही होता तो कोई इलजाम लगाकर घर से निकाल देते?

जियाराम-इसके लिए पहले ही से तैयार बैठा हूँ।

डॉक्टर–सुनें, क्या तैयारी की है?

जियाराम-जब मौका आएगा, देख लीजिएगा।

यह कहकर जियाराम चलता हुआ। डॉक्टर सिन्हा ने बहुत पुकारा, पर उसने फिर कर देखा भी नहीं।

कई दिन के बाद डॉक्टर साहब की जियाराम से फिर मुलाकात हो गई। डॉक्टर साहब सिनेमा के प्रेमी थे और जियाराम की तो जान ही सिनेमा में बसती थी। डॉक्टर साहब ने सिनेमा पर आलोचना करके जियाराम को बातों में लगा लिया और अपने घर लाए। भोजन का समय आ गया था, दोनों आदमी साथ ही भोजन करने बैठे। जियाराम को वहाँ भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा, बोला-मेरे यहाँ तो जब से महाराज अलग हुआ, खाने का मजा ही जाता रहा। बुआजी पक्का वैष्णवी भोजन बनाती हैं। जबरदस्ती खा लेता हूँ, पर खाने की तरफ ताकने को जी नहीं चाहता।

डॉक्टर–मेरे यहाँ तो जब घर में खाना पकता है तो इसे कहीं स्वादिष्ट होता है। तुम्हारी बुआजी प्याज-लहसुन न छूती होंगी?

जियाराम-हाँ साहब, उबालकर रख देती हैं। लालाजी को इसकी परवाह ही नहीं कि कोई खाता है या नहीं, इसीलिए तो महाराज को अलग किया है। अगर रुपए नहीं हैं तो गहने कहाँ से बनते हैं?

डॉक्टर—यह बात नहीं है जियाराम, उनकी आमदनी सचमुच बहुत कम हो गई है। तुम उन्हें बहुत दिक् करते हो।

जियाराम-(हँसकर) मैं उन्हें दिक् करता हूँ? मुझसे कसम ले लीजिए, जो कभी उनसे बोलता भी हूँ। मुझे बदनाम करने का उन्होंने बीड़ा उठा लिया है। बेसबब, बेवजह पीछे पड़े रहते हैं, यहाँ तक कि मेरे दोस्तों से भी उन्हें चिढ़ है। आप ही सोचिए, दोस्तों के बगैर कोई जिंदा रह सकता है? मैं कोई लुच्चा नहीं हूँ कि लुच्चों की सोहबत रखू, मगर आप दोस्तों ही के पीछे मुझे रोज सताया करते हैं। कल तो मैंने साफ कह दिया मेरे दोस्त घर आएँगे, किसी को अच्छा लगे या बुरा। जनाब, कोई हो, हर वक्त की धौंस नहीं सह सकता।