जियाराम की नम्रता का एक चतुर्थांश और गायब हो गया। फड़ककर बोला—अच्छी बात है, पुलिस की सहायता लीजिए। देखें क्या करती है? मेरे दोस्तों में आधे से ज्यादा पुलिस के अफसरों ही के बेटे हैं। जब आप ही मेरा सुधार करने पर तुले हुए हैं तो मैं व्यर्थ क्यों कष्ट उठाऊँ?
यह कहता हुआ जियाराम अपने कमरे में चला गया और एक क्षण के बाद हारमोनियम के मीठे स्वरों की आवाज बाहर आने लगी।
सहृदयता का जलाया हुआ दीपक निर्दय व्यंग्य के एक झोंके से बुझ गया। अड़ा हुआ घोड़ा चुमकारने से जोर मारने लगा था, पर हंटर पड़ते ही फिर अड़ गया और गाड़ी को पीछे ढकेलने लगा।
19.
अबकी सुधा के साथ निर्मला को भी आना पड़ा। वह तो मैके में कुछ दिन और रहना चाहती थी, लेकिन शोकातुर सुधा अकेले कैसे रही! उसको आखिर आना ही पड़ा। रुक्मिणी ने दूंगी से कहा-देखती है, बहू मैके से कैसा निखरकर आई है!
भुंगी ने कहा-दीदी, माँ के हाथ की रोटियाँ लड़कियों को बहुत अच्छी लगती हैं।
रुक्मिणी-ठीक कहती है पूँगी, खिलाना तो बस माँ ही जानती है।
निर्मला को ऐसा मालूम हुआ कि घर का कोई आदमी उसके आने से खुश नहीं। मुंशीजी ने खुशी तो बहुत दिखाई, पर हृदयगत चिंता को न छिपा सके। बच्ची का नाम सुधा ने आशा रख दिया था। वह आशा की मूर्ति-सी थी भी। देखकर सारी चिंता भाग जाती थी। मुंशीजी ने उसे गोद में लेना चाहा तो रोने लगी। दौड़कर माँ से लिपट गई। मानो पिता को पहचानती ही नहीं। मुंशीजी ने मिठाइयों से उसे परचाना चाहा। घर में कोई नौकर तो था नहीं, जाकर सियाराम से दो आने की मिठाइयाँ लाने को कहा।
जियाराम भी बैठा हुआ था। बोल उठा हम लोगों के लिए तो कभी मिठाइयाँ नहीं आतीं।
मुंशीजी ने झुंझलाकर कहा-तुम लोग बच्चे नहीं हो।
जियाराम-और क्या बूढ़े हैं? मिठाइयाँ मँगवाकर रख दीजिए तो मालूम हो कि बच्चे हैं या बूढ़े। निकालिए चार आना और आशा के बदौलत हमारे नसीब भी जागें।
मुंशीजी—मेरे पास इस वक्त पैसे नहीं है। जाओ सिया, जल्द जाना।
जियाराम-सिया नहीं जाएगा। किसी का गुलाम नहीं है। आशा अपने बाप की बेटी है तो वह भी अपने बाप का बेटा है।
मुंशीजी-क्या फजूल की बातें करते हो। नन्ही सी बच्ची की बराबरी करते तुम्हें शर्म नहीं आती? जाओ सियाराम, ये पैसे लो।
जियाराम-मत जाना सिया! तुम किसी के नौकर नहीं हो।
सिया बड़ी दुविधा में पड़ गया। किसका कहना माने? अंत में उसने जियाराम का कहना मानने का निश्चय किया। बाप ज्यादा-से-ज्यादा घुड़क देंगे, जिया तो मारेगा, फिर वह किसके पास फरियाद लेकर जाएगा। बोला—मैं न जाऊँगा।
मुंशीजी ने धमकाकर कहा—अच्छा, तो मेरे पास फिर कोई चीज माँगने मत आना।
मुंशीजी खुद बाजार चले गए और एक रुपए की मिठाई लेकर लौटे। दो आने की मिठाई माँगते हुए उन्हें शर्म