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आई। हलवाई उन्हें पहचानता था। दिल में क्या कहेगा?

मिठाई लिए हुए मुंशीजी अंदर चले गए। सियाराम ने मिठाई का बड़ा सा दोना देखा तो बाप का कहना न मानने का उसे दुःख हुआ। अब वह किस मुंह से मिठाई लेने अंदर जाएगा। बड़ी भूल हुई। वह मन-ही-मन जियाराम की चोट और मिठाई की मिठास में तुलना करने लगा।

सहसा भूँगी ने दो तश्तरियाँ दोनों के सामने लाकर रख दीं। जियाराम ने बिगड़कर कहा-इसे उठा ले जा!

भूँगी–काहे को बिगड़त हो बाबू, क्या मिठाई अच्छी नहीं लगती?

जियाराम-मिठाई आशा के लिए आई है, हमारे लिए नहीं आई? ले जा, नहीं तो सड़क पर फेंक दूँगा। हम तो पैसे-पैसे के लिए रटते रहते हैं और यहाँ रुपए की मिठाई आती है।

भूँगी-तुम ले लो सिया बाबू, ये न लेंगे, न सही।

सियाराम ने डरते-डरते हाथ बढ़ाया था कि जियाराम ने डाँटकर कहा-मत छूना मिठाई, नहीं तो हाथ तोड़कर रख दूँगा। लालची कहीं का!

सियाराम यह घुड़की सुनकर सहम उठा। मिठाई खाने की हिम्मत न पड़ी। निर्मला ने यह कथा सुनी तो दोनों लड़कों को मनाने चली। मुंशीजी ने कड़ी कसम रख दी।

निर्मला-आप समझते नहीं हैं। यह सारा गुस्सा मुझ पर है।

मुंशीजी—गुस्ताख हो गया है। इस खयाल से कोई सख्ती नहीं करता कि लोग कहेंगे, बिना माँ के बच्चों को सताते हैं, नहीं तो सारी शरारत घड़ी भर में निकाल दूँ।

निर्मला—इसी बदनामी का तो मुझे डर है।

मुंशीजी—अब न डरूँगा, जिसके जी में जो आए, कहे।

निर्मला—पहले तो ऐसे न थे।

मुंशीजी—अजी, कहता है कि आपके लड़के मौजूद थे, आपने शादी क्यों की! यह कहते भी इसे संकोच नहीं होता कि आप लोगों ने मंसाराम को विष दे दिया। लड़का नहीं है, शत्रु है।

जियाराम द्वार पर छिपकर खड़ा था। स्त्री-पुरुष में मिठाई के विषय में क्या बातें होती हैं, यही सुनने वह आया था। मुंशीजी का अंतिम वाक्य सुनकर उससे न रहा गया। बोल उठा-शत्रु न होता तो आप उसके पीछे क्यों पड़ते? आप जो इस वक्त कर रहे हैं, वह मैं बहुत पहले समझे बैठा हूँ। भैया न समझे थे, धोखा खा गए। हमारे साथ आपकी दाल न गलेगी। सारा जमाना कह रहा है कि भाई साहब को जहर दिया गया है। मैं कहता हूँ तो आपको क्यों गुस्सा आता है?

निर्मला तो सन्नाटे में आ गई। मालूम हुआ, किसी ने उसकी देह पर अंगारे डाल दिए। मुंशीजी ने डाँटकर जियाराम को चुप कराना चाहा। जियाराम निःशंक खड़ा ईंट का जवाब पत्थर से देता रहा; यहाँ तक कि निर्मला को भी उस पर क्रोध आ गया। यह कल का छोकरा, किसी काम का, न काज का, यो खड़ा टर्रा रहा है, जैसे घर भर का पालन-पोषण यही करता हो। त्योंरियाँ चढ़ाकर बोली–बस, अब बहुत हुआ जियाराम, मालूम हो गया, तुम बड़े लायक हो, बाहर जाकर बैठो।

मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकर बोलते रहे, निर्मला की शह पाई तो दिल बढ़ गया। दाँत पीसकर लपके और इसके पहले कि निर्मला उनके हाथ पकड़ सके, एक थप्पड़ चला ही दिया। थप्पड़ निर्मला के मुँह पर पड़ा, वही सामने पड़ी। माथा चकरा गया। मुंशीजी के सूखे हाथों में इतनी शक्ति है, इसका वह अनुमान न कर सकती थी। सिर पकड़कर बैठ गई। मुंशीजी का क्रोध और भी भड़क उठा, फिर घूँसा चलाया, पर अबकी जियाराम ने