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उनका हाथ पकड़ लिया और पीछे ढकेलकर बोला-दूर से बातें कीजिए, क्यों नाहक अपनी बेइज्जती करवाते हैं? अम्माँजी का लिहाज कर रहा हूँ, नहीं तो दिखा देता।

यह कहता हुआ वह बाहर चला गया। मुंशीजी संज्ञा-शून्य-से खड़े रहे। इस वक्त अगर जियाराम पर दैवी वज्र गिर पड़ता तो शायद उन्हें हार्दिक आनंद होता। जिस पुत्र को कभी गोद में लेकर निहाल हो जाते थे, उसी के प्रति आज भाँति-भाँति की दुष्कल्पनाएँ मन में आ रही थीं।

रुक्मिणी अब तक तो अपनी कोठरी में थी। अब आकर बोली-बेटा अपने बराबर का हो जाए तो उस पर हाथ न छोड़ना चाहिए।

मुंशीजी ने ओठ चबाकर कहा—मैं इसे घर से निकालकर छोड़ूँगा। भीख माँगे या चोरी करे, मुझसे कोई मतलब नहीं।

रुक्मिणी-नाक किसकी कटेगी?

मुंशीजी—इसकी चिंता नहीं।

निर्मला—मैं जानती कि मेरे आने से यह तूफान खड़ा हो जाएगा तो भूलकर भी न आती। अब भी भला है, मुझे भेज दीजिए। इस घर में मुझसे न रहा जाएगा।

रुक्मिणी-तुम्हारा बहुत लिहाज करता है बहू, नहीं तो आज अनर्थ ही हो जाता।

निर्मला—अब और क्या अनर्थ होगा दीदीजी? मैं तो फूँक-फूँककर पाँव रखती हूँ, फिर भी अपयश लग ही जाता है। अभी घर में पाँव रखते देर नहीं हुई और यह हाल हो गया। ईश्वर ही कुशल करे।

रात को भोजन करने कोई न उठा, अकेले मुंशीजी ने खाया। निर्मला को आज नई चिंता हो गई—जीवन कैसे पार लगेगा? अपना ही पेट होता तो विशेष चिंता न थी। अब तो एक नई विपत्ति गले पड़ गई थी। वह सोच रही थीमेरी बच्ची के भाग्य में क्या लिखा है राम?

20.

चिता में नींद कब आती है? निर्मला चारपाई पर करवटें बदल रही थी। कितना चाहती थी कि नींद आ जाए, पर नींद ने न आने की कसम-सी खा ली थी। चिराग बुझा दिया था, खिड़की के दरवाजे खोल दिए थे, टिक-टिक करनेवाली घड़ी भी दूसरे कमरे में रख आई थी, पर नींद का नाम था। जितनी बातें सोचनी थीं, सब सोच चुकी, चिंताओं का भी अंत हो गया, पर पलकें न झपकीं। तब उसने फिर लैंप जलाया और एक पुस्तक पढ़ने लगी। दोचार ही पृष्ठ पढ़े होंगे कि झपकी आ गई। किताब खुली रह गई।

सहसा जियाराम ने कमरे में कदम रखा। उसके पाँव थर-थर काँप रहे थे। उसने कमरे में ऊपर-नीचे देखा। निर्मला सोई हुई थी, उसके सिरहाने ताक पर, एक छोटा-सा पीतल का संदूकचा रखा हुआ था। जियाराम दबे पाँव गया, धीरे से संदूकचा उतारा और बड़ी तेजी से कमरे के बाहर निकला। उसी वक्त निर्मला की आँखें खुल गईं। चौंककर उठ खड़ी हुई। द्वार पर आकर देखा। कलेजा धक् से हो गया। क्या यह जियाराम है? मेरे कमरे में क्या करने आया था। कहीं मुझे धोखा तो नहीं हुआ? शायद दीदीजी के कमरे से आया हो। यहाँ उसका काम ही क्या था? शायद मुझसे कुछ कहने आया हो, लेकिन इस वक्त क्या कहने आया होगा? इसकी नीयत क्या है? उसका दिल काँप उठा।

मुंशीजी ऊपर छत पर सो रहे थे। मुँडेर न होने के कारण निर्मला ऊपर न सो सकती थी। उसने सोचा चलकर