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सियाराम के मन में भी घर से निकल भागने का विचार कई बार हुआ था। इस समय भी उसके मन में यही विचार उठ रहा था। बड़ी उत्सुकता से बोला-घर से निकलकर आप कहाँ गए?

बाबाजी ने हँसकर कहा-उसी दिन मेरे सारे कष्टों का अंत हो गया, जिस दिन घर के मोह-बंधन से छूटा और भय मन से निकला, उसी दिन मानो मेरा उद्धार हो गया। दिन भर मैं एक पुल के नीचे बैठा रहा। संध्या समय मुझे एक महात्मा मिल गए। उनका नाम स्वामी परमानंदजी था। वे बाल-ब्रह्मचारी थे। मुझ पर उन्होंने दया की और अपने साथ रख लिया। उनके साथ मैं देश-देशांतरों में घूमने लगा। वह बड़े अच्छे योगी थे। मुझे भी उन्होंने योगविद्या सिखाई। अब तो मेरे को इतना अभ्यास हो गया है कि जब इच्छा होती है, माताजी के दर्शन कर लेता हूँ, उनसे बात कर लेता हूँ।

सियाराम ने विस्फारित नेत्रों से देखकर पछा-आपकी माता का तो देहांत हो चुका था?

साधु-तो क्या हुआ बच्चा, योग-विद्या में वह शक्ति है कि जिस मृत-आत्मा को चाहे, बुला ले।

सियाराम—मैं योग-विद्या सीख लूँ तो मुझे भी माताजी के दर्शन होंगे?

साधु-अवश्य, अभ्यास से सबकुछ हो सकता है। हाँ, योग्य गुरु चाहिए। योग से बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। जितना धन चाहो, पल-मात्र में मँगा सकते हो। कैसी ही बीमारी हो, उसकी औषधि बता सकते हो।

सियाराम-आपका स्थान कहाँ है?

साधु-बच्चा, मेरा स्थान कहीं नहीं है। देश-देशांतरों से रमता फिरता हूँ। अच्छा बच्चा अब तुम जाओ, मैं जरा स्नान-ध्यान करने जाऊँगा।

सियाराम-चलिए मैं भी उसी तरफ चलता हूँ। आपके दर्शन से जी नहीं भरा।

साधु-नहीं बच्चा, तुम्हें पाठशाला जाने की देरी हो रही है।

सियाराम-फिर आपके दर्शन कब होंगे?

साधु-कभी आ जाऊँगा बच्चा, तुम्हारा घर कहाँ है?

सियाराम प्रसन्न होकर बोला-चलिएगा मेरे घर? बहुत नजदीक है। आपकी बड़ी कृपा होगी।

सियाराम कदम बढ़ाकर आगे-आगे चलने लगा। इतना प्रसन्न था, मानो सोने की गठरी लिए जाता हो। घर के सामने पहुँचकर बोला–आइए, बैठिए कुछ देर।

साधु-नहीं बच्चा, बैठूँगा नहीं। फिर कल-परसों किसी समय आ जाऊँगा। यही तुम्हारा घर है?

सियाराम-कल किस वक्त आइएगा?

साधु-निश्चय नहीं कह सकता। किसी समय आ जाऊँगा।

साधु आगे बढ़े तो थोड़ी ही दूर पर उन्हें एक दूसरा साधु मिला। उसका नाम था हरिहरानंद।

परमानंद से पूछा–कहाँ-कहाँ की सैर की? कोई शिकार फँसा?

हरिहरानंद-इधर चारों तरफ घूम आया, कोई शिकार न मिला। एकाध मिला भी तो मेरी हँसी उड़ाने लगा।

परमानंद-मुझे तो एक मिलता हुआ जान पड़ता है! फँस जाए तो जानूँ।

हरिहरानंद-तुम यों ही कहा करते हो। जो आता है, दो-एक दिन के बाद निकल भागता है।

परमानंद-अबकी न भागेगा, देख लेना। इसकी माँ मर गई है। बाप ने दूसरा विवाह कर लिया है। माँ भी सताया करती है। घर से ऊबा हुआ है।

हरिहरानंद-खूब अच्छी तरह। यही तरकीब सबसे अच्छी है। पहले इसका पता लगा लेना चाहिए कि मुहल्ले में किन-किन घरों में विमाताएँ हैं? उन्हीं घरों में फंदा डालना चाहिए।