22.
निर्मला ने बिगड़कर कहा—इतनी देर कहाँ लगाई?
सियाराम ने ढिठाई से कहा–रास्ते में एक जगह सो गया था।
निर्मला यह तो मैं नहीं कहती, पर जानते हो कै बज गए हैं? दस कभी के बज गए। बाजार कुछ दूर भी तो नहीं है।
सियाराम-कुछ दूर नहीं। दरवाजे ही पर तो है।
निर्मला-सीधे से क्यों नहीं बोलते? ऐसा बिगड़ रहे हो, जैसे मेरा ही कोई काम करने गए हो?
सियाराम-तो आप व्यर्थ की बकवास क्यों करती हैं? लिया सौदा लौटाना क्या आसान काम है? बनिए से घंटों हज्जत करनी पड़ी, यह तो कहो, एक बाबाजी ने कह-सुनकर फेरवा दिया, नहीं तो किसी तरह न फेरता। रास्ते में कहीं एक मिनट भी न रुका, सीधा चला आता हूँ।
निर्मला-घी के लिए गए-गए तो तुम ग्यारह बजे लौटे हो, लकड़ी के लिए जाओगे, तो साँझ ही कर दोगे। तुम्हारे बाबूजी बिना खाए ही चले गए। तुम्हें इतनी देर लगानी था तो पहले ही क्यों न कह दिया? जाते हो लकड़ी के लिए।
सियाराम अब अपने को सँभाल न सका। झल्लाकर बोला-लकड़ी किसी और से मँगाइए। मुझे स्कूल जाने को देर हो रही है।
निर्मला-खाना न खाओगे?
सियाराम-न खाऊँगा।
निर्मला—मैं खाना बनाने को तैयार हूँ। हाँ, लकड़ी लाने नहीं जा सकती।
सियाराम-भूँगी को क्यों नहीं भेजती?
निर्मला-भूँगी का लाया सौदा तुमने कभी देखा नहीं है?
सियाराम-तो मैं इस वक्त न जाऊँगा।
निर्मला—मुझे दोष न देना।
सियाराम कई दिनों से स्कूल नहीं गया था। बाजार-हाट के मारे उसे किताबें देखने का समय ही न मिलता था। स्कूल जाकर झिड़कियाँ खाना, बेंच पर खड़े होने या ऊँची टोपी देने के सिवा और क्या मिलता? वह घर से किताबें लेकर चलता, पर शहर के बाहर जाकर किसी वृक्ष की छाँह में बैठा रहता या पलटनों की कवायद देखता। तीन बजे घर से लौट आता। आज भी वह घर से चला, लेकिन बैठने में उसका जी न लगा, उस पर आँतें अलग जल रही थीं। हाँ! अब उसे रोटियों के भी लाले पड़ गए। दस बजे क्या खाना न बन सकता था? माना कि बाबूजी चले गए थे। क्या मेरे लिए घर में दो-चार पैसे भी न थे? अम्माँ होती तो इस तरह बिना कुछ खाए-पिए आने देती? मेरा अब कोई नहीं रहा।
सियाराम का मन बाबाजी के दर्शन के लिए व्याकुल हो उठा। उसने सोचा कि इस वक्त वह कहाँ मिलेंगे? कहाँ चलकर देखू? उनकी मनोहर वाणी, उनकी उत्साहप्रद सांत्वना, उसके मन को खींचने लगी। उसने आतुर होकर कहा-मैं उनके साथ ही क्यों न चला गया? घर पर मेरे लिए क्या रखा था?
वह आज यहाँ से चला तो घर न जाकर सीधा घी वाले साहजी की दुकान पर गया। शायद बाबाजी से वहाँ मुलाकात हो जाए, पर वहाँ बाबाजी न थे। बड़ी देर तक खड़ा-खड़ा लौट आया।
घर आकर बैठा ही था कि निर्मला ने आकर कहा—आज देर कहाँ लगाई? सबेरे खाना नहीं बना, क्या इस वक्त