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श्रीहर्ष की कविता के नमूने

और कुछ नहीं बतलाते । अच्छी वंचना-चातुरी आपने सीखी है। यदि आप अपना नाम न बतलावेंगे, तो मैं भी आपके प्रश्नों का उत्तर न दूँगी। क्या आप नहीं जानते कि पर-पुरुष के साथ कुल-कन्याओं को इस प्रकार उत्तर-प्रत्युत्तर करते बैठना उचित नहीं है ?"

यह सुनकर नल बहुत घबराया और कहने लगा—'मुझको धिक्कार है कि मैं दूतस्त्र का भी काम अच्छे प्रकार नहीं कर सकता । शीघ्रता के काम में इतनी देरी मैं कर रहा हूँ ! हे दमयंति ! तुझको उचित है कि अपनी इस मधुर वाणी का प्रयोग, जो मेरे साथ वृथा वार्तालाप में कर रही है, देवतों के संदेश का उत्तर देने में करके उनको कृतार्थ कर । क्योंकि—

यथा यथेह स्वदपेक्षयानया
निमेषमप्येष जनो विलम्बते;
रुषा शरव्यीकरणे दिवौकसां ।
तथा तथाद्य स्वरते रतः पतिः।

(सर्ग ९, श्लोक २०)
 

भावार्थ—जैसे-जैसे मैं यहाँ इस प्रकार तुम्हारे उत्तर की अपेक्षा में पल-पल को देरी कर रहा हूँ, वैसे-ही-वेसे रतिनायक देवतों को अपने बाण का निशाना बनाने के लिये शीघ्रता कर रहा है।" इस तरह नल का हठ देखकर दमयंती ने उत्तर दिया—