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नैषध-चरित-चर्चा

होते हैं। सब सर्ग न बहुत बड़े और न बहुत छोटे होने चाहिए। परंतु नैषध-चरित का प्रत्येक सर्ग और काव्यों के सर्गों की अपेक्षा बड़ा है। किसी-किसी सर्ग में २०० के लगभग श्लोक हैं, और अनुष्टुप् छंद का प्रयोग जिस सर्ग में है, उसमें तो श्लोकों को संख्या २०० के भी ऊपर पहुँची है। इसी से हरविजय को छोड़कर और सब काव्यों से नैषध-चरित बड़ा है। संस्कृत के काव्य विशेष करके श्रृंगार और वीर-रसात्मक ही हैं; परंतु बीच-बीच में और रस भी हैं।

खेद का विषय है कि आज तक, हिंदी में, महाकाव्य-लक्षणाक्रांत एक भी काव्य नहीं बना[१]। तुलसीदास-कृत रामायण यद्यपि परम रम्य और मनोहर काव्य है, तथापि पूर्वोक्त लक्षण-युक्त न होने से आलंकारिकों के मतानुसार उसे महाकाव्यों की श्रेणी में स्थान नहीं मिल सकता। परंतु हम तो उसे महाकाव्य ही नहीं, किंतु महामहाकाव्य कहने में भी संकोच नहीं करते।

बँगला और मराठी भाषाएँ हिंदी से अधिक सौभाग्यशालिनी हैं। इन भाषाओं में महाकाव्यों की रचना हुए बहुत दिन हुए। बंगभाषा में माइकेल मधुसूदनदत्त-


  1. हाल में कुछ काव्य ऐसे प्रकाशित हुए हैं, जो आलंकारिकों के लक्षणानुसार तो महाकाव्य नहीं, परंतु उनकी महत्ता प्राचीन महाकाव्यों से कम नहीं। प्रत्युत, समय को देखते, वे उनसे भी बढ़कर है।