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नैषध-चरित का कथानक

कुतूहलाक्रांत होकर पकड़ लिया। पकड़ लेने पर हंस ने अतिशय विलाप किया, और राजा से ऐसी-ऐसी कारुणिक बातें कहीं कि उसने दयार्द्र होकर हंस को छोड़ दिया। छाड़े जाने के अनंतर इस उपकार का प्रत्युपकार करने के लिये हंस ने दमयंती के पास जाकर दूतत्व करना और उसमें नल का और भी अधिक प्रेम जाग्रत् करके नल को दमयंती की प्राप्ति होने में सहायता करना स्वीकार किया। हंस ने ऐसा हो किया । विदर्भ-देश को जाकर, वहाँ दमयंती से नल का वृत्तांत कहकर, उसको हंस ने इतना उत्कंठित किया कि नल को विना देखे ही दमयंती को इतनी विरह-वेदना होने लगी कि उस वेदना से व्यथित होकर उसने चंद्रमा और काम को हजारों गालियाँ सुनाई । फिर अनेक प्रलाप करते-करते वह मूर्च्छित हो गई । सुता की मूर्छा का वृत्तांत जानने पर उसके पिता राजा भीम उसके पास दौड़े आए, और अनुमान से सब बातें जानकर शीघ्र ही उसके स्वयंवर का प्रबंध करना उन्होंने निश्चित किया । इतनी कथा ४ सर्गों में वर्णन की गई है।

दमयंती के सौंदर्यादि का वर्णन नारद ने इंद्र से जाकर किया और उसके स्वयंवर का समाचार भी सुनाया। इस बात को सुनकर इंद्र, वरुण, यम और अग्नि इन चारो देवतों के हृदयों में दमयंती की प्राप्ति की अतिशय उत्कंठा उत्पन्न हुई । दमयंती को पाने की अभिलाषा से उधर से ये चारो स्वयंवर देखने के लिये चले ; इधर से नल ने भी इसी निमित्त