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नैषध-चरित-चर्चा

देवता का भी अर्थ निकलता है और नल का भी। इस वर्णन- वैचित्र्य को सुनकर और पाँच पुरुषों का एक ही रूप देखकर दमयंती यह न पहचान सकी कि इनमें यथार्थ नल कौन है । इससे वह अतिशय विषण्ण हुई, और अंत में उसने उन्हीं देवतों का नाम ले-लेकर स्तवन इत्यादि किया। दमयंती की इस भक्ति- भावना से वे देवता प्रसन्न हो गए। उनके प्रसन्न होने से दमयंती की बुद्धि भी विशद हो गई, और उसे वे चार श्लोक स्मरण हुए, जिनको सरस्वती ने यथार्थ नल के सम्मुख कहा था। इन चार श्लोकों में नल का भी वर्णन है और एक-एक में क्रम-क्रम से उन चार दिक्पालों का भी है । वे चारो दिक्पाल चार दिशा के स्वामी हैं और नल, राजा होने के कारण, सभी दिशाओं का स्वामी है । अतएव दमयंती ने जान लिया कि वह परमार्थ नल ही का वर्णन था । दिकपालों का अर्थ, जो ध्वनित होता था, गौण था। समासोक्ति आदि अलंकारों में प्रकृत वस्तु के अतिरिक्त अप्रकृत का भी अर्थ गर्भित रहता है। परंतु वह केवल कवि का कवित्व-कौशल है ; उसमें तथ्य नहीं । नल-विषयक इतना निश्चय हो जाने पर दमयंती को और भी कई बातें उस समय देख पड़ी, जो देवता और मनुष्य के भेद की सूचक थीं। यथा—नलरूपी देवतों के नेत्र निर्निमेष थे, परंतु नल के नहीं; नलरूपी देवतों के कंठ की माला म्लान न थी, परंतु नल के कंठ की माला म्लान थी । नलरूपी देवतों के शरीर की छाया