करि करिबाल बेम जोरि-जोरि कोरि-कोरि
चंद्र ते विशद नाके गुननि गुनतु है।
अमन अमोल बोल डोल मलमल होत
कबहुँ घटै न जन देवता सुनतु है।
आठौ दिशि रानी राजधानी के श्रृंगारिबे को
आठै दिगराज जानि चीरनि चुनतु है।
श्लोक का भावार्थ पहले समझे विना इस कवित्त का आशय जानने के लिये गुमानीजी ही की सहायता आवश्यक है। उसके विना श्रीहर्ष का अभिप्राय अधिगत करने में बहुत कम लोग समर्थ हो सकते हैं । अनुवाद के सहारे संस्कृत-पद्य का भाव । समझ में आ जाना तो दूर रहा, उसे देखकर उलटा व्यामोह उत्पन्न होता है । वह समझ में नहीं आता । न यही समझ पड़े, न वही-ऐसी दशा होती है। जिस समय की यह हिंदी है, उस समय 'कोरि-कोरि, जोरि-जोरि' और 'अमल अमोल ओल डोल झलझल' इत्यादि शब्द-झंकार से लोगों को प्रमोद प्राप्त होता होगा; परंतु इस समय उसकी प्राप्ति कम संभव प्रतीत होती है । एक श्लोक का अनुवाद गमानीजी ने अतिलघु तोटक-वृत्त में किया और दूसरे का गज़ों लंबे कवित्त में। दोनो श्लोक पास-ही-पास के हैं। जान पड़ता है, छंद के मेल का विचार उन्होंने कुछ भी नहीं किया ।
शिवसिंहसरोजवाले ठाकुर साहब के अनुसार गुमानीजी ने 'पंचनली जो नैषध में एक कठिन स्थान है, उसको भी