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दूर करने के लिए सुमति नाम के मन्त्री ने सकलशास्त्र-पारंगत आचार्य विष्णुशर्मा को बुलाकर राजपुत्रों का शिक्षक नियुक्त करने की सलाह दी।

राजा ने विष्णुशर्मा को बुलाकर कहा कि यदि आप इन पुत्रों को शीघ्र ही राजनीतिज्ञ बनादेंगे तो मैं आपको १०० गाँव इनाम में दूँगा। विष्णुशर्मा ने हँसकर उत्तर दिया—"महाराज! मैं अपनी विद्या को बेचता नहीं हूँ। इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। आपने आदर से बुलाकर आदेश दिया है इसलिये ६ महीने में ही मैं आपके पुत्रों को राजनीतिज्ञ बनादूँगा। यदि मैं इसमें सफल न हुआ तो अपना नाम बदल डालूंगा।"

आचार्य का आश्वासन पाकर राजा ने अपने पुत्रों का शिक्षणभार उनपर डाल दिया और निश्चिन्त हो गया। विष्णुशर्मा ने उनकी शिक्षा के लिये अनेक कथायें बनाईं। उन कथाओं द्वारा ही उन्हें राजनीति और व्यवहार-नीति की शिक्षा दी। उन कथाओं के संग्रह का नाम ही 'पञ्चतन्त्र' है। पाँच प्रकरणों में उनका विभाग होने से उसे 'पञ्चतन्त्र' नाम दिया गया।

राजपुत्र इन कथाओं को सुनकर ६ महीने में ही पूरे राजनीतिज्ञ बन गये। उन पाँच प्रकरणों के नाम हैं: १—मित्रभेद, २—मित्रसम्प्राप्ति, ३—काकोलूकीयम्, ४—लब्धप्रणाशम् और ५—अपरीक्षितकारकम्। प्रस्तुत पुस्तक में पाँचों प्रकरण दिये गये हैं।