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१.

अनधिकार चेष्टा

अव्यापारेषु व्यापारं यो नरः कर्त्तुमिच्छति।
स एव निधनं याति कीलोत्पाटीव वानरः॥

दूसरे के काम में हस्तक्षेप करना मूर्खता है।

एक गाँव के पास, जंगल की सीमा पर, मन्दिर बन रहा था। वहाँ के कारीगर दोपहर के समय भोजन के लिये गाँव में आ जाते थे।

एक दिन जब वे गाँव में आये हुए थे तो बन्दरों का एक दल इधर-उधर घूमता हुआ वहीं आ गया जहाँ कारीगरों का काम चल रहा था। कारीगर उस समय वहाँ नहीं थे। बन्दरों ने इधर-उधर उछलना और खेलना शुरू कर दिया।

वहीं एक कारीगर शहतीर को आधा चीरने के बाद उसमें कील फँसा कर गया था। एक बन्दर को यह कौतूहल हुआ कि यह कील यहाँ क्यों फँसी है। तब आधे चिरे हुए शहतीर पर बैठकर वह अपने दोनों हाथों से कील को बाहिर खींचने लगा। कील बहुत मज़बूती से वहाँ गड़ी थी—इसलिये बाहिर नहीं

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