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मित्रभेद]
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निकली। लेकिन बन्दर भी हठी था, वह पूरे बल से कील निकालने में जूझ गया।

अन्त में भारी झटके के साथ वह कील निकल आई—किन्तु उसके निकलते ही बन्दर का पिछला भाग शहतीर के चिरे हुए दो भागों के बीच में आकर पिचक गया। अभागा बन्दर वहीं तड़प-तड़प कर मर गया।

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इसीलिए मैं कहता हूँ कि हमें दूसरों के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। हमें शेर के भोजन का अवशेष तो मिल ही जाता है, अन्य बातों की चिन्ता क्यों करें?"

दमनक ने कहा—"करटक! तुझे तो बस अपने अवशिष्ट आहार की ही चिन्ता रहती है। स्वामी के हित की तो तुझे परवाह ही नहीं।"

करटक—"हमारी हित-चिन्ता से क्या होता है? हमारी गिनती उसके प्रधान सहायकों में तो है ही नहीं। बिना पूछे सम्मति देना मूर्खता है। इससे अपमान के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।"

दमनक—"प्रधान-अप्रधान की बात रहने दे। जो भी स्वामी की अच्छी सेवा करेगा वह प्रधान बन जायगा। जो सेवा नहीं करेगा, वह प्रधान-पद से भी गिर जायगा। राजा, स्त्री और लता का यही नियम है कि वे पास रहने वाले को ही अपनाते हैं।"

करटक—"तब क्या किया जाय? अपना अभिप्राय स्पष्ट-स्पष्ट कह दे।"