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पञ्चतन्त्र
 



दमनक—"आज हमारा स्वामी बहुत भयभीत है। उसे भय का कारण बताकर सन्धि-विग्रह-आसन-संश्रय-द्वैधीभाव आदि उपायों से हम भय-निवारण की सलाह देंगे।"

करटक—"तुझे कैसे मालूम कि स्वामी भयभीत है?"

दमनक—"यह जानना कोई कठिन काम नहीं है। मन के भाव छिपे नहीं रहते। चेहरे से, इशारों से, चेष्टा से, भाषण-शैली से, आँखों की भ्रू भंगी से वे सबके सामने आ जाते हैं। आज हमारा स्वामी भयभीत है। उसके भय को दूर करके हम उसे अपने वश में कर सकते हैं। तब वह हमें अपना प्रधान सचिव बना लेगा।"

करटक—"तू राज-सेवा के नियमों से अनभिज्ञ है; स्वामी को वश में कैसे करेगा?"

दमनक—"मैंने तो बचपन में अपने पिता के संग खेलते २ राज-सेवा का पाठ पढ़ लिया था। राजसेवा स्वयं एक कला है। मैं उस कला में प्रवीण हूँ।"

यह कह कर दमनक ने राज-सेवा के नियमों का निर्देश किया। राजा को सन्तुष्ट करने और उसकी दृष्टि में सम्मान पाने के अनेक उपाय भी बतलाये। करटक दमनक की चतुराई देखकर दंग रह गया। उसने भी उसकी बात मान ली, और दोनों शेर की राजसभा की ओर चल दिये।

दमनक को आता देखकर पिंगलक द्वारपाल से बोला—"हमारे भूतपूर्व मन्त्री का पुत्र दमनक आ रहा है, उसे हमारे पास बेरोक आने दो।"