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[पञ्चतन्त्र
 

चार कानों में ही भेद की बात सुरक्षित रह सकती है, छः कानों में वह भेद गुप्त नहीं रह सकता।"

तब पिंगलक ने इशारे से बाघ, रीछ, चीते आदि सब जानवरों को सभा से बाहिर भेज दिया।

सभा में एकान्त होने के बाद दमनक ने शेर के कानों के पास जाकर प्रश्न किया—

दमनक—"स्वामी! जब आप पानी पीने गये थे तब पानी पिये बिना लौट क्यों आये थे? इसका कारण क्या था?"

पिंगलक ने ज़रा सूखी हँसी हंसते हुए उत्तर दिया :—"कुछ भी नहीं।"

दमनक—"देव! यदि वह बात कहने योग्य नहीं है तो मत कहिये। सभी बातें कहने योग्य नहीं होतीं। कुछ बातें अपनी स्त्री से भी छिपाने योग्य होती हैं; कुछ पुत्रों से भी छिपा ली जाती हैं। बहुत अनुरोध पर भी ये बातें नहीं कही जातीं।"

पिंगलक ने सोचा—'यह दमनक बुद्धिमान दिखता है; क्यों न इस से अपने मन की बात कह दी जाय।' यह सोच वह कहने लगा—

पिंगलक—"दमनक! दूर से जो यह हुंकार की आवाज़ आ रही है, उसे तुम सुनते हो?"

दमनक—"सुनता हूँ स्वामी! उस से क्या हुआ?"

पिंगलक—"दमनक! मैं इस वन से चले जाने की बात सोच रहा हूँ।"