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२.

ढोल की पोल

शब्दमात्रान्न भेतव्यम्


शब्द-मात्र से डरना उचित नहीं

गोमायु नाम का गीदड़ एक बार भूखा-प्यासा जङ्गल में घूम रहा था। घूमते-घूमते वह एक युद्ध-भूमि में पहुँच गया। वहाँ दो सेनाओं में युद्ध होकर शान्त हो गया था। किन्तु, एक ढोल अभी तक वहीं पड़ा था। उस ढोल पर इधर-उधर लगी बेलों की शाखायें हवा से हिलती हुईं प्रहार करती थीं। उस प्रहार से ढोल में बड़ी ज़ोर की आवाज़ होती थी।

आवाज़ सुनकर गोमायु बहुत डर गया। उसने सोचा 'इससे पूर्व कि यह भयानक शब्द वाला जानवर मुझे देखे, मैं यहाँ से भाग जाता हूँ।' किन्तु, दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि भय या

आनन्द के उद्वेग में हमें सहसा कोई काम नहीं करना चाहिये। पहिले भय के कारण की खोज करनी चाहिये। यह सोचकर वह धीरे-धीरे उधर चल पड़ा, जिधर से शब्द आ रहा था। शब्द के बहुत निकट पहुँचा तो ढोल को देखा। ढोल पर बेलों की

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