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मित्रभेद]
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भयंकर जानवर नहीं, बल्कि सीधा-सादा बैल है। उसने सोचा—'अब मैं सन्धि-विग्रह की कूटनीति से पिंगलक को अवश्य अपने वश में कर लूँगा। आपत्तिग्रस्त राजा ही मन्त्रियों के वश में होते हैं।'

यह सोचकर वह पिंगलक से मिलने के लिये वापिस चल दिया। पिंगलक ने उसे अकेले आता देखा तो उसके दिल में धीरज बँधा। उसने कहा:—"दमनक! वह जानवर देखा तुमने?"

दमनक—"आप की दया से देख लिया, स्वामी!"

पिंगलक—"सचमुच!"

दमनक—"स्वामी के सामने असत्य नहीं बोल सकता मैं। आप की तो मैं देवता की तरह पूजा करता हूँ, आप से झूठ कैसे बोल सकूँगा?"

पिंगलक—"संभव है तूने देखा हो, इसमें विस्मय क्या? और इसमें भी आश्चर्य नहीं कि उसने तुझे नहीं मारा। महान् व्यक्ति महान् शत्रु पर ही अपना पराक्रम दिखाते हैं; दीन और तुच्छ जन पर नहीं। आंधी का झोंका बड़े वृक्षों को ही गिराता है, घासपात को नहीं।"

दमनक—"मैं दीन ही सही; किन्तु आप की आज्ञा हो तो मैं उस महान् पशु को भी आप का दीन सेवक बना दूँ।"

पिंगलक ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा—"यह कैसे होगा दमनक?"

दमनक—"बुद्धि के बल से सब कुछ हो सकता है स्वामी! जो काम बड़े-बड़े हथियार नहीं कर सकते, वह छोटी-सी बुद्धि कर देती है।"