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मित्रभेद]
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तो कहता है कि भगवान ने उसे यह सारा वन खेलने और चरने को सौंप दिया है।"

पिंगलक—"सच कहते हो दमनक! भगवान के आशीर्वाद के बिना कौन बैल है जो यहाँ इस वन में इतनी निःशंकता से घूम सके। फिर तूने क्या उत्तर दिया, दमनक!"

दमनक—"मैंने उसे कहा कि इस वन में तो चंडिकावाहन रूप शेर पिंगलक पहले ही रहता है। तुम भी उसके अतिथि बन कर रहो। उसके साथ आनन्द से विचरण करो। वह तुम्हारा स्वागत करेगा।"

पिंगलक—"फिर, उसने क्या कहा?"

दमनक—"उसने यह बात मान ली। और कहा कि अपने स्वामी से अभय वचन ले आओ, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। अब स्वामी जैसा चाहें वैसा करूँगा।"

दमनक की बात सुनकर पिंगलक बहुत प्रसन्न हुआ, बोला—"बहुत अच्छा कहा दमनक, तूने बहुत अच्छा कहा। मेरे दिल की बात कहदी। अब, उसे अभय वचन देकर शीघ्र मेरे पास ले आओ।"

दमनक संजीवक के पास जाते-जाते सोचने लगा—"स्वामी आज बहुत प्रसन्न हैं। बातों ही बातों में मैंने उन्हें प्रसन्न कर लिया। आज मुझ से अधिक धन्यभाग्य कोई नहीं।'

संजीवक के पास जाकर दमनक सविनय बोला—"मित्र! मेरे स्वामी ने तुम्हें अभय वचन दे दिया है। अब, मेरे साथ