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[पञ्चतन्त्र
 

आ जाओ। किन्तु, राजप्रासाद में जाकर कहीं अभिमानी न हो जाना। मेरे साथ मित्रता का सम्बन्ध निभाना। मैं भी तुम्हारे संकेत से राज्य चलाऊँगा। हम दोनों मिलकर राज्यलक्ष्मी का भोग करेंगे।"

दोनों मिलकर पिंगलक के पास गए। पिंगलक ने नखविभूषित दक्षिण ओर का हाथ उठाकर पिंगलक का स्वागत किया और कहा—"कल्याण हो आप का! आप इस निर्जन वन में कैसे आ गये!"

संजीवक ने सब वृत्तान्त कह सुनाया। पिंगलक ने सब सुनकर कहा—"मित्र! डरो मत। इस वन में मेरा ही राज्य है। मेरी भुजाओं से रक्षित वन में तुम्हारा कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता। फिर भी, अच्छा यही है कि तुम हर समय मेरे साथ रहो। वन में अनेक भयंकर पशु रहते हैं। बड़े-बड़े हिंसक वनचरों को भी डरकर रहना पड़ता है; तुम तो फिर हो ही निरामिष-भोजी।"

शेर और बैल की इस मैत्री के बाद कुछ दिन तो वन का शासन करटक-दमनक ही करते रहे; किन्तु बाद में संजीवक के संपर्क से पिंगलक भी नगर की सभ्यता से परिचित होता गया। संजीवक को सभ्य जीव मान कर वह उसका सम्मान करने लगा और स्वयं भी संजीवक की तरह सुसभ्य होने का यत्न करने लगा। थोड़े दिन बाद संजीवक का प्रभाव पिंगलक पर इतना