पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४८]
[पञ्चतन्त्र
 

अम्ल रस का खून पिया है; केवल मीठा खून नहीं पिया। आज इस राजा के मीठे खून का स्वाद लेना चाहता हूँ। तू तो रोज़ ही मीठा खून पीती है। एक दिन मुझे भी उसका स्वाद लेने दे।"

जूँ बोली—"अग्निमुख! मैं राजा के सो जाने के बाद उस का खून पीती हूँ। तू बड़ा चंचल है, कहीं मुझ से पहले ही तूने खून पीना शुरू कर दिया तो दोनों मारे जायँगे। हाँ, मेरे पीछे रक्तपान करने की प्रतिज्ञा करे तो एक रात भले ही ठहर जा।"

खटमल बोला—"भगवती! मुझे स्वीकार है। मैं तब तक रक्त नहीं पीऊँगा जब तक तू नहीं पीलेगी। वचन भंग करूँ तो मुझे देव-गुरु का शाप लगे।"

इतने में राजा ने चादर ओढ़ ली। दीपक बुझा दिया। खटमल बड़ा चंचल था। उसकी जीभ से पानी निकल रहा था। मीठे खून के लालच से उसने जूँ के रक्तपान से पहले ही राजा को काट लिया। जिसका जो स्वभाव हो, वह उपदेशों से नहीं छूटता। अग्नि अपनी जलन और पानी अपनी शीतलता के स्वभाव को कहाँ छोड़ सकती है? मर्त्य जीव भी अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते।

अग्निमुख के पैने दांतों ने राजा को तड़पा कर उठा दिया। पलंग से नीचे कूद कर राजा ने सन्तरी से कहा—"देखो, इस शैया में खटमल या जूँ अवश्य है। इन्हीं में से किसी ने मुझे काटा है।" सन्तरियों ने दीपक जला कर चादर की तहें देखनी शुरू कर दीं। इस बीच खटमल जल्दी से भागकर पलंग के पावों