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७.

रंगा सियार

त्यक्ताश्चाभ्यानतरा येन बाह्याश्चाभ्यान्तरीकृताः।
स एव मृत्युमाप्नोति मूर्खश्चंडरवो यथा॥


अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने वाला—
आत्मीयों को छोड़कर परकीयों में रहने वाला
नष्ट हो जाता है।


एक दिन जंगल में रहने वाला चंडरव नाम का गीदड़ भूख से तड़पता हुआ लोभवश नगर में भूख मिटाने के लिये आ पहुँचा।

उसके नगर में प्रवेश करते ही नगर के कुत्तों ने भौंकते-भौंकते उसे घेर लिया और नोचकर खाने लगे। कुत्तों के डर से चंडरव भी जान बचाकर भागा। भागते-भागते जो भी दरवाज़ा पहले मिला उसमें घुस गया। वह एक धोबी के मकान का दरवाज़ा था। मकान के अन्दर एक बड़ी कड़ाही में धोबी ने नील घोलकर नीला पानी बनाया हुआ था। कड़ाही नीले पानी से भरी थी। गीदड़ जब डरा हुआ अन्दर घुसा तो अचानक उस कड़ाही में जा गिरा। वहाँ से निकला तो उसका रंग ही बदला हुआ था। अब वह

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