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[पञ्चतन्त्र
 

कर चंडरव की भेंट करते थे; चंडरव उनमें से कुछ भाग खाकर शेष अपने नौकरों-चाकरों में बाँट देता था।

कुछ दिन तो उसका राज्य बड़ी शान्ति से चलता रहा। किन्तु, एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया।

उस दिन चंडरव को दूर से गीदड़ों की किलकारियाँ सुनाई दी। उन्हें सुनकर चंडरव का रोम-रोम खिल उठा। खुशी में पागल होकर वह भी किलकारियाँ मारने लगा।

शेर-बाघ आदि पशुओं ने जब उसकी किलकारियाँ सुनीं तो वे समझ गये कि यह चंडरव ब्रह्मा का दूत नहीं, बल्कि मामूली गीदड़ है। अपनी मूर्खता पर लज्जा से सिर झुकाकर वे आपस में सलाह करने लगे—"इस गीदड़ ने तो हमें खूब मूर्ख बनाया, इसे इसका दंड दो, इसे मार डालो।"

चंडरव ने शेर-बाघ आदि की बात सुन ली। वह भी समझ गया कि अब उसकी पोल खुल गई है। अब जान बचानी कठिन है। इसलिये वह वहाँ से भागा। किन्तु, शेर के पंजे से भागकर कहाँ जाता? एक ही छलांग में शेर ने उसे दबोच कर खंड-खंड कर दिया।

इसीलिये मैं कहता हूँ कि जो आत्मीयों को दुत्कार कर परायों को अपनाता है उसका नाश हो जाता है।"

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दमनक की बात सुनकर पिंगलक ने कहा—"दमनक! अपनी बात को तुम्हें प्रमाणित करना होगा। इसका क्या प्रमाण है कि