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मित्रभेद]
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संजीवक मुझे द्वेषभाव से देखता है।"

दमनक—"इसका प्रमाण आप स्वयं अपनी आँखों से देख लेना। आज सुबह ही उसने मुझ से यह भेद प्रगट किया है कि कल वह आपका वध करेगा। कल यदि आप उसे अपने दरबार में लड़ाई के लिये तैयार देखें, उसकी आँखें लाल हों, होंठ फड़कते हों, एक ओर बैठकर आप को क्रूर वक्रदृष्टि से देख रहा हो, तब आप को मेरी बात पर स्वयं विश्वास हो जायगा।"

शेर पिंगलक को संजीवक बैल के विरुद्ध उकसाने के बाद दमनक संजीवक के पास गया। संजीवक ने जब उसे घबड़ाये हुए आते देखा तो पूछा—"मित्र! स्वागत हो। क्या बात है? बहुत दिन बाद आए? कुशल तो है?"

दमनक—"राज-सेवकों के कुशल का क्या पूछना? उनका चित्त सदा अशान्त रहता है। स्वेच्छा से वे कुछ भी नहीं कर सकते। निःशंक होकर एक शब्द भी नहीं बोल सकते। इसीलिये सेवावृत्ति को सब वृत्तियों से अधम कहा जाता है।"

संजीवक—"मित्र! आज तुम्हारे मन में कोई विशेष बात कहने को है, वह निश्चिन्त होकर कहो। साधारणतया राजसचिवों को सब कुछ गुप्त रखना चाहिये, किन्तु मेरे-तुम्हारे बीच कोई परदा नहीं है। तुम बेखटके अपने दिल की बात मुझ से कह सकते हो।"