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मित्रभेद]
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लाओ। मैं इससे वन में आने का प्रयोजन पूछूँगा।"

शेर की आज्ञा सुनकर अन्य पशु ऊँट को—जिसका नाम 'क्रथनक' था, शेर के दरबार में लाये। ऊँट ने अपनी दुःखभरी कहानी सुनाते हुए बतलाया कि वह अपने साथियों से बिछुड़ कर जङ्गल में अकेला रह गया है। शेर ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा—"अब तुझे ग्राम में जाकर भार ढोने की कोई आवश्यकता नहीं है। जङ्गल में रहकर हरी-हरी घास से सानन्द पेट भरो और स्वतन्त्रतापूर्वक खेलो-कूदो।"

शेर का आश्वासन मिलने के बाद ऊँट उस जंगल में आनन्द से रहने लगा।

कुछ दिन बाद उस वन में एक मतवाला हाथी आ गया। मतवाले हाथी से अपने अनुचर पशुओं की रक्षा करने के लिए शेर को हाथी से युद्ध करना पड़ा। युद्ध में जीत तो शेर की ही हुई, किन्तु हाथी ने भी जब एक बार शेर को सूंड में लपेट कर घुमाया तो उसके अस्थि-पिंजर हिल गये। हाथी का एक दांत भी शेर की पीठ में खुभ गया था। इस युद्ध के बाद शेर बहुत घायल हो गया था, और नए शिकार के योग्य नहीं रहा था। शिकार के अभाव में उसे बहुत दिन से भोजन नहीं मिला था। उसके अनुचर भी, जो शेर के अवशिष्ट भोजन से ही पेट पालते थे, कई दिनों से भूखे थे।

एक दिन उन सब को बुलाकर शेर ने कहा—"मित्रो! मैं बहुत घायल हो गया हूँ। फिर भी यदि कोई शिकार तुम मेरे पास